Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-86 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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२१३) णाणिहिँ मूढहँ मुणिवरुहँ अंतरु होइ महंतु
देहु वि मिल्लइ णाणियउ जीवइँ भिण्णु मुणंतु ।।८६।।
ज्ञानिनां मूढानां मुनिवराणां अन्तरं भवति महत्
देहमपि मुञ्चति ज्ञानी जीवाद्भिन्नं मन्यमानः ।।८६।।
ज्ञानिनां मूढानां च मुनिवराणां अन्तरं विशेषो भवति कथंभूतम् महत् कस्मादिति
चेत् देहमपि मुञ्चति कोऽसौ ज्ञानी किं कुर्वन् सन् जीवात्सकाशाद्भिन्नं मन्यमानो जानन्
इति तथा च वीतरागस्वसंवेदनज्ञानी पुत्रकलत्रादिबहिर्द्रव्यं तावद्दूरे तिष्ठतु शुद्धबुद्धैक-
स्वभावात् स्वशुद्धात्मस्वरूपात्सकाशात् पृथग्भूतं जानन् स्वकीयदेहमपि त्यजति मूढात्मा पुनः
स्वीकरोति इति तात्पर्यम् ।।८६।। एकमेकचत्वारिंशत्सूत्रप्रमितमहास्थलमध्ये पञ्चदशसूत्रैर्वीतराग-
bhAvArtha:vItarAg svasa.nvedanaj~nAnI putra, kalatrAdi bahAranA (dUranA) padArthathI to dUr
ja (alag ja) rahe Che paN shuddha, buddha jeno ek svabhAv Che evA svashuddhAtmasvarUpathI potAnA
dehane pR^ithagbhUt jANIne potAnA dehane paN tyaje Che ane mUDhAtmA (bahirAtmA) te sarvane potAnA
kare Che. 86.
e pramANe ekatAlIs sUtronA mahAsthaLamA.n pa.ndar sUtrothI vItarAg svasa.nvedanarUp j~nAnanI
गाथा८६
अन्वयार्थ :[ज्ञानिनां ] सम्यग्दृष्टि भावलिंगी [मूढ़ानां ] मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी
[मुनिवराणां ] मुनियोंमें [महत् अंतरं ] बड़ाभारी भेद [भवति ] है [ज्ञानी ] क्योंकि ज्ञानी
मुनि तो [देहम् अपि ] शरीरको भी [जीवाद्भिन्नं ] जीव से जुदा [मन्यमानः ] जानकर [मुचंति ]
छोड़ देते हैं, अर्थात् शरीरका भी ममत्व छोड़ देते हैं, तो फि र पुत्र, स्त्री आदिका क्या कहना
है ? ये तो प्रत्यक्षसे जुदे हैं, और द्रव्यलिंगीमुनि लिंग(भेष)में आत्म
- बुद्धिको रखता है
भावार्थ :वीतरागस्वसंवेदनज्ञानी महामुनि मन-वचन-काय इन तीनोंसे अपनेको
भिन्न जानता है, द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्मादिसे जिसको ममता नहीं है, पिता, माता, पुत्र,
कलत्रादिकी तो बात अलग रहे जो अपने आत्म
- स्वभावसे निज देहको ही जुदा जानता है
जिसके परवस्तुमें आत्मभाव नहीं है और मूढ़ात्मा परभावोंको अपने जानता है यही ज्ञानी
और अज्ञानीमें अन्तर है परको अपना मानें वह बँधता है, और न मानें वह मुक्त होता है
यह निश्चयसे जानना ।।८६।। इसप्रकार इकतालीस दोहोंके महास्थलके मध्यमें पन्द्रह दोहोंमें