Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-103 (Adhikar 2).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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388 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-2 : dohA-103
लक्खणु मुणइ तहं स नैव लक्षणं मनुते तेषां जीवानाम् किंलक्षणम् दंसणु णाणु चरित्तु
सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्रमिति अत्र निश्चयेन सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रलक्षणानां जीवानां
ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यचाण्डालादिदेहभेदं द्रष्ट्वा रागद्वेषौ न कर्तव्याविति तात्पर्यम् ।।१०२।।
अथ शरीराणि बादरसूक्ष्माणि विधिवशेन भवन्ति न च जीवा इति दर्शयति
२३०) अंगइँ सुहुमइँ बादरइँ विहिवसिँ होंति जे बाल
जिय पुणु सयल वि तित्तडा सव्वत्थ वि सयकाल ।।१०३।।
अङ्गानि सूक्ष्माणि बादराणि विधिवशेन भवन्ति ये बालाः
जीवाः पुनः सकला अपि तावन्तः सर्वत्रापि सदाकाले ।।१०३।।
ahI.n, nishchayanayathI samyagdarshan, samyagj~nAn ane samyagcharitra jemanA.n lakShaN Che evA
jIvonA brAhmaN, kShatriy, vaishya, chA.nDAlAdi dehanA bhed joIne rAg-dveSh na karavA, evu.n tAtparya
Che. 102.
have, vidhinA vashe bAdar ane sUkShma sharIro thAy Che paN jIvo thatA nathI, em darshAve
Che :
देवोंका शरीर और शुभाशुभ मिश्रसे नरदेह तथा मायाचारसे पशुका शरीर मिलता है, अर्थात्
इन शरीरोंके भेदसे जीवोंकी अनेक चेष्टायें देखी जाती हैं, परंतु दर्शन ज्ञान लक्षणसे सब तुल्य
हैं
उपयोग लक्षणके बिना कोई जीव नहीं है इसलिये ज्ञानीजन सबको समान जानते हैं
निश्चयनयसे दर्शन-ज्ञान-चारित्र जीवोंके लक्षण हैं, ऐसा जानकर ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य, शूद्र
चांडालादि देहके भेद देखकर राग-द्वेष नहीं करना चाहिये
सब जीवोंके मैत्रीभाव करना, यही
तात्पर्य है ।।१०२।।
आगे सूक्ष्म बादर-शरीर जीवोंके कर्मके सम्बन्धसे होते हैं, सो सूक्ष्म, बादर, स्थावर,
जंगम ये सब शरीरके भेद हैं, जीव तो चिद्रूप है, सब भेदोंसे रहित है, ऐसा दिखलाते हैं
गाथा१०३
अन्वयार्थ :[सूक्ष्माणि ] सूक्ष्म [बादराणि ] और बादर [अंगानि ] शरीर [ये ] तथा
जो [बालाः ] बाल, वृद्ध, तरुणादि अवस्थायें [विधिवशेन ] कर्मोंसे [भवंति ] होती हैं, [पुनः ]
और [जीवाः ] जीव तो [सकला अपि ] सभी [सर्वत्र ] सब जगह [सर्वकाले अपि ] और
सब कालमें [तावंतः ] उतने प्रमाण ही अर्थात् असंख्यातप्रदेशी ही है