Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-143 (Adhikar 2) Samyaktvani Durlabhata.

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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adhikAr-2 : dohA-143 ]paramAtmaprakAsh: [ 453
jagatvyApI jagatkartA na samajavo, evo bhAvArtha Che. 142.
have, samyaktvanu.n durlabhapaNu.n darshAve Che :
bhAvArtha:atItakAL anAdi Che, jIv paN anAdi Che ane sa.nsArarUpI samudra te
paN anAdi-ana.nt Che. e rIte anAdi kALamA.n mithyAtva, rAgAdinI AdhInatAthI
nijashuddhAtmAthI chyut jIvane A be vastu maLI nathI. be kaI? (1) ana.ntaj~nAnAdi-
शिवशब्दत्वेन सर्वत्र ज्ञातव्यो नान्यः कोऽपि शिवनामा व्याप्येको जगत्कर्तेति भावार्थः ।।१४२।।
अथ सम्यक्त्वदुर्लभत्वं दर्शयति
२७४) कालु अणाइ अणाइ जिउ भव-सायरु वि अणंतु
जीविं बिण्णि ण पत्ताइँ जिणु सामिउ सम्मत्तु ।।१४३।।
कालः अनादिः अनादिः जीवः भवसागरोऽपि अनन्तः
जीवेन द्वे न प्राप्त जिनस्वामी सम्यक्त्वम् ।।१४३।।
कालु इत्यादि कालु अणाइ गतकालो अनादिः अणाइ जिउ जीवोऽप्यनादिः
भव-सायरु वि अणंतु भवः संसारस्य एव समुद्रः सोऽप्यनादिरनन्तश्च जीविं बिण्णि ण पत्ताइ
एवमनादिकाले मिथ्यात्वरागाद्यधीनतया निजशुद्धात्मभावनाच्युतेन जीवेन द्वयं न लब्धम् द्वये
माना है, ऐसा तू मत मान तू अपने स्वरूपको अथवा केवलज्ञानियोंको अथवा मोक्षपदको
शिव समझ यही श्रीवीतरागदेवकी आज्ञा हैं ।।१४२।।
आगे सम्यग्दर्शनको दुर्लभ दिखलाते हैं
गाथा१४३
अन्वयार्थ :[कालः अनादिः ] काल भी अनादि है, [जीवः अनादिः ] जीव भी
अनादि हैं, और [भवसागरोडिप ] संसारसमुद्र भी [अनंतः ] अनादि अनंत है लेकिन
[जीवेन ] इस जीवने [जिनः स्वामी सम्यक्त्वम् ] जिनराजस्वामी और सम्यक्त्व [द्वे ] ये दो
[न प्राप्ते ] नहीं पाये
भावार्थ :काल, जीव और संसार ये तीनों अनादि हैं, उसमें अनादिकालसे भटकते
हुए इस जीवने मिथ्यात्वरागादिकके वश होकर शुद्धात्मस्वरूप अपना न देखा, न जाना यह
संसारी जीव अनादिकालसे आत्मज्ञानकी भावनासे रहित है इस जीवने स्वर्ग, नरक, राज्यादि