Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
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adhikAr-2 : dohA-157 ]paramAtmaprakAsh: [ 473
परमकलाद्रष्टया यावदवलोकनं सूक्ष्मनिरीक्षणं तेन प्रत्यक्षोऽपि स्वसंवेदनग्राह्योऽपि भवति ।
कस्य । तासु यस्य पूर्वोक्त प्रकारेण निर्मलं मनस्तस्येति भावार्थः ।।१५६।।
अथ —
२८८) अप्पा परहँ ण मेलविउ मणु मारिवि सहस त्ति ।
सो वढ जाएँ किं करइ जासु ण एही सत्ति ।।१५७।।
आत्मा परस्य न मेलितः मनो मारयित्वा सहसेति ।
स वत्स योगेन किं करोति यस्य न ईद्रशी शक्ति : ।।१५७।।
अप्पा इत्यादि । अप्पा अयं प्रत्यक्षीभूतः सविकल्प आत्मा परहं ख्यातिपूजा-
लाभप्रभृतिसमस्तमनोरथरूपविकल्पजालरहितस्य विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावस्य परमात्मनः ण मेलविउ
उससे आत्मस्वरूपका अवलोकन होता है । आत्मा स्वसंवेदनज्ञान करके ही ग्रहण करने योग्य
है । जिसका मन विषयसे चंचल न हो, उसीको आत्माका दर्शन होता है ।।१५६।।
आगे यह कहते हैं, कि जिसने शीघ्र ही मनको वशकर आत्माको परमात्मासे नहीं
मिलाया, जिसमें ऐसी शक्ति नहीं है, वह योगसे क्या कर सकता है ? कुछ भी नहीं कर
सकता —
गाथा – १५७
अन्वयार्थ : — [सहसा मनः मारयित्वा ] जिसने शीघ्र ही मनको वशमें करके
[आत्मा ] यह आत्मा [परस्य न मेलितः ] परमात्मामें नहीं मिलाया, [वत्स ] हे शिष्य,
[यस्य ] जिसकी [ईदृशी ] ऐसी [शक्तिः ] शक्ति [न ] नहीं है, [सः ] वह [योगेन ] योगसे
[किं करोति ] क्या कर सकता है ? ।।
भावार्थ : — यह प्रत्यक्षरूप संसारी जीव विकल्प सहित है दशा जिसकी, उसको
समस्त विकल्प – जाल रहित निर्मल ज्ञान दर्शन स्वभाव परमात्मासे नहीं मिलाया । मिथ्यात्व
avalokan-sUkShma nirIkShaN tenA vaDe pratyakSha paN – svasa.nvedanagrAhya paN – thAy Che. kone? pUrvokta
prakAre jenu.n man nirmaL Che tene, evo bhAvArtha Che. 156.
vaLI, (have kahe Che ke jeNe manane shIghra ja vash karIne AtmAne paramAtmAnI sAthe
nathI joDyo, jemA.n evI shakti nathI te yogathI shu.n karI shake?) : —
bhAvArtha: — jeNe mithyAtva, viShay, kaShAyAdi vikalpa samUhamA.n pariNamelA manane
vItarAg nirvikalpa samAdhirUp shastrathI sahasA haNIne, A pratyakSharUp savikalpa AtmAne, khyAti,