Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
स्वशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुष्ठानरूपाभेदरत्नत्रयात्मकवीतरागनिर्विकल्पसमाधौ प्रतिष्ठितानां
परमयोगिनां कश्चित् स्फु रति संवित्तिमायाति । किं कुर्वन् । वीतरागपरमानन्दजनयन् स्फु टं
निश्चितम् । तथा चोक्त म् — ‘‘आत्मानुष्ठाननिष्ठस्य व्यवहारबहिःस्थितेः । जायते परमानन्दः
कश्चिद्योगेन योगिनः ।।’’ हे प्रभाकरभट्ट स एवंभूतः परमात्मा भवतीति । अत्र वीतराग-
निर्विकल्पसमाधिरतानां स एवोपादेयः, तद्विपरीतानां हेय इति तात्पर्यार्थः ।।३५।।
परम योगीश्वरोंके अर्थात् जिनके शत्रु-मित्रादि सब समान है, और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान,
सम्यक्चारित्ररूप अभेदरत्नत्रय जिसका स्वरूप है, ऐसी वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें तिष्ठे हुए
हैं, उन योगीश्वरोंके हृदयमें [परमानन्दं जनयन् ] वीतराग परम आनन्दको उत्पन्न करता
हुआ [यः कश्चित् ] जो कोई [स्फु रति ] स्फु रायमान होता है, [स स्फु टं ] वही प्रकट
[परमात्मा ] परमात्मा [भवति ] है, ऐसा जानो । ऐसा ही दूसरी जगह भी ‘‘आत्मानुष्ठान’’
इत्यादिसे कहा है, अर्थात् जो योगी आत्माके अनुभवमें तल्लीन हैं, और व्यवहारसे रहित
शुद्ध निश्चयमें तिष्ठते हैं, उन योगियोंके ध्यान करके अपूर्व परमानन्द उत्पन्न होता है ।
इसलिए हे प्रभाकरभट्ट, जो आत्मस्वरूप योगीश्वरोंके हृदयमें स्फु रायमान है, वही उपादेय
है । जो योगी वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें लगे हुए हैं, संसारसे पराङ्मुख हैं, उन्हींके वह
आत्मा उपादेय है, और जो देहात्मबुद्धि विषयासक्त हैं, वे अपने स्वरूपको नहीं जानते
हैं, उनको आत्मरुचि नहीं हो सकती यह तात्पर्य हुआ ।।३५।।
pariNat ane nij shuddha AtmAnA.n samyakshraddhAn, samyagj~nAn ane samyaganuShThAnarUp
abhed-ratnatrayAtmak vItarAg nirvikalpa samAdhimA.n sthit paramayogIone vItarAg paramAna.ndane
utpanna karato je koI paramAtmA sphurAyamAn thAy Che – je koI sa.nvedanamA.n Ave Che – te he
prabhAkar bhaTTa! nishchayathI paramAtmA Che. (iShTopadesh gAthA 47mA.n) kahyu.n paN Che ke —
‘‘आत्मानुष्ठाननिष्ठस्य व्यवहारबहिःस्थितेः ।
जायते परमानंदः कश्चिद्योगेन योगिनः ।।’’
artha: — AtmAnuShThAnamA.n niShTha (AtmasvarUpamA.n sthit thayelA) ane vyavahArathI
bahAr (dUr) rahelA yogIne yogathI (AtmadhyAnathI) koI anirvachanIy paramAna.nd utpanna
thAy Che.
ahI.n vItarAg nirvikalpa samAdhimA.n rat thayelAone te ja paramAtmA upAdey Che;
ane temanAthI viparIt Che temane (vItarAg nirvikalpa samAdhimA.n rat nathI temane) te hey
Che evo tAtparyArtha Che. 35.
66 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-1 : dohA-35