Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (itrans transliteration). Gatha-39 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
shrI diga.nbar jain svAdhyAyama.ndir TrasTa, sonagaDh - 364250
यस्य पदे केवलज्ञाने बिम्बितं प्रतिफ लितं दर्पणे बिम्बमिव स एवंभूतः परमात्मा भवतीति
अत्र यस्यैव केवलज्ञाने नक्षत्रमेकमिव लोकः प्रतिभाति स एव रागादिसमस्त-
विकल्परहितानामुपादेयो भवतीति भावार्थः
।।३८।।
अथ योगीन्द्रवृन्दैर्यो निरवधिज्ञानमयो निर्विकल्पसमाधिकाले ध्येयरूपश्चिन्त्यते तं
परमात्मानमाह
३९) जोइयविंदहिँ णाणमउ जो झाइज्जइ झेउ
मोक्खहँ कारणि अणवरउ सो परमप्पउ देउ ।।३९।।
योगिवृन्दैः ज्ञानमयः यो ध्यायते ध्येयः
मोक्षस्य कारणे अनवरतं स परमात्मा देवः ।।३९।।
योगीन्द्रवृन्दैः शुद्धात्मवीतरागनिर्विकल्पसमाधिरतैः ज्ञानमयः केवलज्ञानेन निर्वृत्तः यः
कर्मतापन्नो ध्यायते ध्येयो ध्येयरूपोऽपि किमर्थं ध्यायते मोक्षकारणे मोक्षनिमित्ते अनवरतं
निरन्तरं स एव परमात्मा देवः परमाराध्य इति अत्र य एव परमात्मा मुनिवृन्दानां ध्येयरूपो
वही परमात्मा रागादि समस्त विकल्पोंसे रहित योगीश्वरोंको उपादेय है ।।३८।।
आगे अनंत ज्ञानमयी परमात्मा योगीश्वरोंकर निर्विकल्पसमाधि-कालमें ध्यान करने
योग्य है, उसी परमात्माको कहते हैं
गाथा३९
अन्वयार्थ :[यः ] जो [योगीन्द्रवृन्दैः ] योगीश्वरोंकर [मोक्षस्य कारणे ] मोक्षके
निमित्त [अनवरतं ] निरन्तर [ज्ञानमयः ] ज्ञानमयी [ध्यायते ] चिंतवन किया जाता है, [सः
परमात्मा देवः ] वह परमात्मदेव [ध्येयः ] आराधने योग्य है, दूसरा कोई नहीं
भावार्थ :जो परमात्मा मुनियोंको ध्यावने योग्य कहा है, वही शुद्धात्माके वैरी
आर्त-रौद्र ध्यानकर रहित धर्म ध्यानी पुरुषोंको उपादेय है, अर्थात् जब आर्तध्यान रौद्रध्यान
ja paramAtmA rAgAdi samasta vikalpa rahit yogIone upAdey Che. e bhAvArtha Che. 38.
have yogIshvaro nirvikalpa samAdhikALe niravadhi j~nAnamay jene dhyeyarUp chi.ntave Che te
paramAtmAne kahe Che :
bhAvArtha :ahI.n je paramAtmA munione dhyeyarUp kahyo Che te ja shuddhAtmAnA sa.nvedanathI
70 ]yogIndudevavirachit: [ adhikAr-1 : dohA-39