Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Kannada transliteration). Gatha-78 (Adhikar 2).

< Previous Page   Next Page >


Page 348 of 565
PDF/HTML Page 362 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ಶ್ರೀ ದಿಗಂಬರ ಜೈನ ಸ್ವಾಧ್ಯಾಯಮಂದಿರ ಟ್ರಸ್ಟ, ಸೋನಗಢ - ೩೬೪೨೫೦
೩೪೮ ]ಯೋಗೀನ್ದುದೇವವಿರಚಿತ: [ ಅಧಿಕಾರ-೨ : ದೋಹಾ-೭೮
अप्पा इत्यादि अप्पा मिल्लिवि शुद्धबुद्धैकस्वभावं परमात्मपदार्थं मुक्त्वा णाणियहं
ज्ञानिनां मिथ्यात्वरागादिपरिहारेण निजशुद्धात्मद्रव्यपरिज्ञानपरिणतानां अण्णु ण सुंदरु वत्थु अन्यन्न
सुन्दरं समीचीनं वस्तु प्रतिभाति येन कारणेन
तेण ण विसयहं मणु रमइ तेन कारणेन
शुद्धात्मोपलब्धिप्रतिपक्षभूतेषु पञ्चेन्द्रियविषयरूपकामभोगेषु मनो न रमते
किं कुर्वताम् जाणंतहं
जानतां परमत्थु वीतरागसहजानन्दैकपारमार्थिकसुखाविनाभूतं परमात्मानमेवेति तात्पर्यम् ।।७७।।
अथ तमेवार्थं द्रष्टान्तेन समर्थयति
२०५) अप्पा मिल्लिवि णाणमउ चित्ति ण लग्गइ अण्णु
मरगउ जेँ परियाणियउ तहुँ कच्चेँ कउ गण्णु ।।७८।।
आत्मानं मुक्त्वा ज्ञानमयं चित्ते न लगति अन्यत्
मरकतः येन परिज्ञातः तस्य काचेन कुतो गणना ।।७८।।
ಭಾವಾರ್ಥ:ಮಿಥ್ಯಾತ್ವ, ರಾಗಾದಿನಾ ತ್ಯಾಗ ವಡೇ (ತ್ಯಾಗಪೂರ್ವಕ) ನಿಜಶುದ್ಧಾತ್ಮ-ದ್ರವ್ಯನಾ
ಪರಿಜ್ಞಾನರೂಪೇ ಪರಿಣತ ಜ್ಞಾನೀಓನೇ ಶುದ್ಧ, ಬುದ್ಧ ಜ ಜೇನೋ ಏಕ ಸ್ವಭಾವ ಛೇ ಏವಾ ಪರಮಪದಾರ್ಥ ಸಿವಾಯ
ಬೀಜೀ ಕೋಈ ಪಣ ವಸ್ತು ಸಮೀಚೀನ ಲಾಗತೀ ನಥೀ ತೇಥೀ ಏಕ (ಕೇವಳ) ವೀತರಾಗ ಸಹಜಾನಂದರೂಪ ಪಾರಮಾರ್ಥಿಕ
ಸುಖನೀ ಸಾಥೇ ಅವಿನಾಭೂತ ಪರಮಾತ್ಮಾನೇ ಜಾಣನಾರನುಂ ಮನ ಶುದ್ಧಾತ್ಮಾನೀ ಪ್ರಾಪ್ತಿಥೀ ಪ್ರತಿಪಕ್ಷಭೂತ
ಪಂಚೇನ್ದ್ರಿಯನಾ ವಿಷಯಭೂತ ಕಾಮಭೋಗೋಮಾಂ ರಮತುಂ ನಥೀ. ೭೭.
ಹವೇ, ದ್ರಷ್ಟಾಂತ ವಡೇ ತೇ ಜ ಅರ್ಥನುಂ ಸಮರ್ಥನ ಕರೇ ಛೇ :
भावार्थ :मिथ्यात्व रागादिकके छोड़नेसे, निज शुद्धात्म द्रव्यके यथार्थ ज्ञानकर
जिनका चित्त परिणत हो गया है, ऐसे ज्ञानियोंको शुद्ध, बुद्ध परम स्वभाव परमात्माको छोड़के
दूसरी कोई भी वस्तु सुन्दर नहीं भासती
इसलिये उनका मन कभी विषयवासनामें नहीं
रमता ये विषय कैसे हैं जो कि शुद्धात्माकी प्राप्तिके शत्रु हैं ऐसे ये भवभ्रमणके कारण
हैं, कामभोगरूप पाँच इंद्रियोंके विषय उनमें मूढ़ जीवोंका ही मन रमता है, सम्यग्दृष्टिका मन
नहीं रमता कैसे हैं सम्यग्दृष्टि, जिन्होंने वीतराग सहजानंद अखंड सुखमें तन्मय परमात्मतत्त्वको
जान लिया है इसलिये यह निश्चय हुआ, कि जो विषयवासनाके अनुरागी हैं, वे अज्ञानी
हैं, और जो ज्ञानीजन हैं, वे विषयविकारसे सदा विरक्त ही हैं ।।७७।।
आगे इसी कथनको दृष्टांतसे दृढ़ करते हैं
गाथा७८
अन्वयार्थ :[ज्ञानमयं आत्मानं ] केवलज्ञानादि अनंतगुणमयी आत्माको [मुक्त्वा ]
छोड़कर [अन्यत् ] दूसरी वस्तु [चित्ते ] ज्ञानियोंके मनमें [न लगति ] नहीं रुचती उसका