Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
कारणविरहितः शुद्धजीवो वर्धते क्षरति हीयते न येन कारणेन चरमशरीरप्रमाणं मुक्त जीवं
जिनवरा भणन्ति तेन कारणेनेति । तथाहि — यद्यपि संसारावस्थायां हानिवृद्धिकारणभूतशरीर-
नामकर्मसहितत्वाद्धीयते वर्धते च तथापि मुक्त ावस्थायां हानिवृद्धिकारणाभावाद्वर्धते हीयते च
नैव, चरमशरीरप्रमाण एव तिष्ठतीत्यर्थः । कश्चिदाहमुक्त ावस्थायां प्रदीपवदावरणाभावे सति
लोकप्रमाणविस्तारेण भाव्यमिति । तत्र परिहारमाह — प्रदीपस्य योऽसौ प्रकाशविस्तारः स
स्वभावज एव न त्वपरजनितः पश्चाद्भाजनादिना साद्यावरणेन प्रच्छादितस्तेन कारणेन
ଭାଵାର୍ଥ : — ଜୋ କେ ସଂସାରାଵସ୍ଥାମାଂ ଜୀଵ ହାନିଵୃଦ୍ଧିନା କାରଣରୂପ ଶରୀରନାମ କର୍ମ ସହିତ
ହୋଵାଥୀ ଘଟେ ଛେ ଅନେ ଵଧେ ଛେ, ତୋପଣ ମୁକ୍ତ-ଅଵସ୍ଥାମାଂ ହାନିଵୃଦ୍ଧିନା କାରଣନୋ ଅଭାଵ ହୋଵାଥୀ
ଵଧତୋ-ଘଟତୋ ନଥୀ ଅର୍ଥାତ୍ ଚରମଶରୀରପ୍ରମାଣ ଜ ରହେ ଛେ.
ଅହୀଂ କୋଈ ପ୍ରଶ୍ନ କରେ ଛେ କେ ଜେଵୀ ରୀତେ ଆଵରଣନୋ ଅଭାଵ ଥତାଂ ଦୀଵାନା ପ୍ରକାଶନୋ ଵିସ୍ତାର
ଥାଯ ଛେ, ତେଵୀ ରୀତେ ମୁକ୍ତ-ଅଵସ୍ଥାମାଂ ଆଵରଣନୋ ଅଭାଵ ଥତାଂ ଜୀଵନା ପ୍ରଦେଶୋନୋ ଲୋକପ୍ରମାଣେ ଵିସ୍ତାର
ଥଵୋ ଜୋଈଏ?
ତେନୋ ପରିହାର କରଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ କେ ଦୀଵାନା ପ୍ରକାଶନୋ ଜେ ଵିସ୍ତାର ଛେ ତେ ସ୍ଵଭାଵଜନ୍ଯ ଛେ,
ପଣ ପରଜନିତ ନଥୀ, ଭାଜନ ଆଦିନା ସାଦି ଆଵରଣଥୀ ତେନୋ ପ୍ରକାଶଵିସ୍ତାର ଆଚ୍ଛାଦିତ କରଵାମାଂ
ଆଵ୍ଯୋ ହତୋ, ତେ କାରଣେ ତେନା ଆଵରଣନୋ ଅଭାଵ ଥତାଂ ଜ ପ୍ରକାଶଵିସ୍ତାର ଘଟେ ଛେ ଜ (ସଂଭଵେ ଛେ)
ପଣ ଜୀଵ ଅନାଦିକାଳଥୀ କର୍ମଥୀ ଢଂକାଯେଲୋ ହୋଵାଥୀ ତେନୋ ସ୍ଵାଭାଵିକ ଵିସ୍ତାର ନଥୀ.
ସଂକୋଚଵିସ୍ତାର କ୍ଯା କାରଣେ ଛେ? ସଂକୋଚଵିସ୍ତାର ଶରୀରନାମକର୍ମଜନିତ ଛେ ତେ କାରଣେ (ଜେଵୀ
ରୀତେ ମାଟୀନୁଂ ଵାସଣ ପାଣୀଥୀ ଭୀନୁଂ ରହେ ଛେ ତ୍ଯାଂ ସୁଧୀ ପାଣୀନା ସଂବଂଧଥୀ ତେମାଂ ଵଧ-ଘଟ ଥାଯ ଛେ,
नामकर्मसे रहित हुआ [शुद्धजीवः ] शुद्धजीव [न वर्धते क्षरति ] न तो बढ़ता है, और न घटता
है, [तेन ] इसी कारण [जिनवराः ] जिनेन्द्रदेव [जीवं ] जीवको [चरमशरीरप्रमाणं ]
चरमशरीरप्रमाण [ब्रुवन्ति ] कहते हैं ।
भावार्थ : — यद्यपि संसार अवस्थामें हानि-वृद्धिका कारण शरीरनामा नामकर्म है,
उसके संबंधसे जीव घटता है, और बढ़ता है; जब महामच्छका शरीर पाता है, तब तो
शरीरकी वृद्धि होती है, और जब निगोदिया शरीर धारता है, तब घट जाता है और मुक्त
अवस्थामें हानि-वृद्धिका कारण जो नामकर्म उसका अभाव होनेसे जीवके प्रदेश न तो
सिकुड़ते हैं, न फै लते हैं, किन्तु चरमशरीरसे कुछ कम पुरुषाकार ही रहते हैं, इसलिये
शरीरप्रमाण हैं, यह निश्चय हुआ । यहाँ कोई प्रश्न करे, कि जब तक दीपकके आवरण
है, तब तक तो प्रकाश नहीं हो सकता, और जब उसके रोकनेवालेका अभाव हुआ, तब
प्रकाश विस्तृत होकर फै ल जाता है, उसी प्रकार मुक्ति अवस्थामें आवरणका अभाव होनेसे
୯୨ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫୪