Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
तदनन्तरं द्रव्यगुणपर्यायनिरूपणमुख्यत्वेन सूत्रत्रयं कथयति । तद्यथा —
५६) अप्पा जणियउ केण ण वि अप्पेँ जणिउ ण कोइ ।
दव्व-सहावेँ णिच्चु मुणि पज्जउ विणसइ होइ ।।५६।।
आत्मा जनितः केन नापि आत्मना जनितं न किमपि ।
द्रव्यस्वभावेन नित्यं मन्यस्व पर्यायः विनश्यति भवति ।।५६।।
आत्मा न जनितः केनापि आत्मना कर्तृभूतेन जनितं न किमपि, द्रव्यस्वभावेन
नित्यमात्मानं मन्यस्व जानीहि । पर्यायो विनश्यति भवति चेति । तथाहि । संसारिजीवः
ଏ ପ୍ରମାଣେ ତ୍ରଣ ପ୍ରକାରନା ଆତ୍ମାନା ପ୍ରତିପାଦକ ପ୍ରଥମ ମହାଧିକାରମାଂ ଜେ ପରମାତ୍ମା
ଵ୍ଯଵହାରନଯଥୀ ଜ୍ଞାନନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ ଲୋକାଲୋକଵ୍ଯାପକ କହେଵାମାଂ ଆଵ୍ଯୋ ଛେ, ତେ ଜ ପରମାତ୍ମା
ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ଅସଂଖ୍ଯ ପ୍ରଦେଶୀ ହୋଵା ଛତାଂ ପଣ ପୋତାନା ଦେହମାଂ ରହେ ଛେ, ଏଵୀ ଵ୍ଯାଖ୍ଯାନନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ
ଛ ସୂତ୍ରୋ ସମାପ୍ତ ଥଯାଂ.
ତ୍ଯାର ପଛୀ ଦ୍ରଵ୍ଯ-ଗୁଣ-ପର୍ଯାଯନା କଥନନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ ତ୍ରଣ ସୂତ୍ରୋ କହେ ଛେ ତେ ଆ
ପ୍ରମାଣେ : —
ଭାଵାର୍ଥ : — ସଂସାରୀ ଜୀଵ ଶୁଦ୍ଧଆତ୍ମାନୀ ସଂଵିତ୍ତିନା ଅଭାଵଥୀ ଉପାର୍ଜନ କରେଲା କର୍ମଥୀ
ଜୋ କେ ଵ୍ଯଵହାରଥୀ ଉତ୍ପନ୍ନ ଥାଯ ଛେ ଅନେ ପୋତେ ଶୁଦ୍ଧଆତ୍ମାନୀ ସଂଵିତ୍ତିଥୀ ଚ୍ଯୁତ ଥଈ କର୍ମୋନେ ଉତ୍ପନ୍ନ
ऐसे जिसमें तीन प्रकारकी आत्माका कथन है, ऐसे पहले महाधिकारमें जो ज्ञानकी
अपेक्षा व्यवहानयसे लोकलोकव्यापक कहा गया, वही परमात्मा निश्चयनयसे असंख्यातप्रदेशी
है, तो भी अपनी देहके प्रमाण रहता है, इस व्याख्यानकी मुख्यतासे छह दोहा-सूत्र कहे गये ।
आगे द्रव्य, गुण, पर्यायके कथनकी मुख्यतासे तीन दोहे कहते हैं —
गाथा – ५६
अन्वयार्थ : — [आत्मा ] यह आत्मा [केन अपि ] किसीसे भी [न जनितं ] उत्पन्न
नहीं हुआ, [आत्मना ] और इस आत्मासे [किमपि ] कोई द्रव्य उत्पन्न नहीं हुआ,
[द्रव्यस्वभावेन ] द्रव्यस्वभावकर [नित्यं मन्यस्व ] नित्य जानो, [पर्यायः विनश्यति भवति ]
पर्यायभावसे विनाशीक है ।
भावार्थ : — यह संसारी-जीव यद्यपि व्यवहारनयकर शुद्धात्मज्ञानके अभावसे उपार्जन
किये ज्ञानावरणादि शुभाशुभ कर्मोंके निमित्तसे नर-नारकादि पर्यायोंसे उत्पन्न होता है, और
୯୬ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫୬