Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
जातौ साधारणा अपि विजातौ पुनरसाधारणाः अमूर्तित्वं पुद्गलद्रव्यं प्रत्यसाधारणमाकाशादिकं
प्रति साधारणं प्रदेशत्वं पुनः कालद्रव्यं प्रति पुद्गलपरमाणुद्रव्यं च प्रत्यसाधारणं शेषद्रव्यं प्रति
साधारणमिति संक्षेपव्याख्यानम् एवं शेषद्रव्याणामपि यथासंभवं ज्ञातव्यमिति भावार्थः ।।५८।।
अथानन्तसुखस्योपादेयभूतस्याभिन्नत्वात् शुद्धगुणपर्यायप्रतिपादनमुख्यत्वेन सूत्राष्टकं
ଗୁଣୋ ସାଧାରଣ ଛେ. ଜ୍ଞାନ ସୁଖାଦି ଗୁଣୋ ସ୍ଵଜାତିମାଂ (ଅର୍ଥାତ୍ ଜୀଵଦ୍ରଵ୍ଯୋନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ) ସାଧାରଣ ଛେ
ପଣ ଵିଜାତିମାଂ (ଵିଜାତିଯ ଦ୍ରଵ୍ଯୋନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ) ଅସାଧାରଣ ଛେ. ଅମୂର୍ତତ୍ଵ, ପୁଦ୍ଗଲଦ୍ରଵ୍ଯ, ପ୍ରତି
(ପୁଦ୍ଗଲଦ୍ରଵ୍ଯନୀ ଅପେକ୍ଷାଏ) ଅସାଧାରଣ ଛେ, ଆକାଶାଦି ପ୍ରତି ସାଧାରଣ ଛେ. ଵଳୀ ପ୍ରଦେଶପଣୁଂ କାଳଦ୍ରଵ୍ଯ
ପ୍ରତି ଅନେ ପୁଦ୍ଗଲପରମାଣୁଦ୍ରଵ୍ଯ ପ୍ରତି ଅସାଧାରଣ ଛେ, ବାକୀନା ଦ୍ରଵ୍ଯୋ ପ୍ରତି ସାଧାରଣ ଛେ.
ଏ ପ୍ରମାଣେ ସଂକ୍ଷେପମାଂ କଥନ କର୍ଯୁଂ.
ଏ ପ୍ରମାଣେ ବାକୀନା ଦ୍ରଵ୍ଯୋନୁଂ କଥନ ପଣ ଯଥାସଂଭଵ ସମଜୀ ଲେଵୁଂ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୫୮.
ହଵେ ଜେମାଂ ତ୍ରଣ ପ୍ରକାରନା ଆତ୍ମାନୁଂ କଥନ ଛେ ଏଵା ପହେଲା ମହାଧିକାରମାଂ ଦ୍ରଵ୍ଯ-ଗୁଣପର୍ଯାଯନା
ଵ୍ଯାଖ୍ଯାନନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ ସାତମା ସ୍ଥଳମାଂ ତ୍ରଣ ଦୋହାସୂତ୍ର ସମାପ୍ତ ଥଯାଂ.
ହଵେ ଉପାଦେଯଭୂତ ଅନଂତସୁଖଥୀ ଅଭିନ୍ନ ହୋଵାଥୀ ଶୁଦ୍ଧଗୁଣପର୍ଯାଯନା କଥନନୀ ମୁଖ୍ଯତାଥୀ
ଆଠ ସୂତ୍ରୋ କହେଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ, ତେ ଆଠ ଗାଥାସୂତ୍ରୋମାଂଥୀ ପ୍ରଥମ ଚାର ସୂତ୍ରୋ କର୍ମଶକ୍ତିନା ସ୍ଵରୂପନୀ
कालकी अपेक्षा असाधारण है पुद्गलद्रव्यमें मूर्तीकगुण असाधारण है, इसीमें पाया जाता
है, अन्यमें नहीं और अस्तित्वादि गुण इसमें पाये जाते हैं, तथा अन्यमें भी, इसलिये साधारणगुण
हैं
चेतनपना पुद्गलमें सर्वथा नहीं पाया जाता पुद्गल-परमाणुको द्रव्य कहते हैं स्पर्श,
रस, गंध, वर्णस्वरूप जो मूर्ति वह पुद्गलका विशेषगुण है अन्य सब द्रव्योंमें जो उनका
स्वरूप है, वह द्रव्य है, और अस्तित्वादि गुण, तथा स्वभाव परिणति पर्याय है जीव और
पुद्गलके बिना अन्य चार द्रव्योंमें विभाव-गुण और विभाव-पर्याय नहीं है, तथा जीव पुद्गलमें
स्वभाव-विभाव दोनों हैं
उनमेंसे सिद्धोंमें तो स्वभाव ही है, और संसारीमें विभावकी मुख्यता
है पुद्गल परमाणुमें स्वभाव ही है, और स्कंध विभाव ही है इस तरह छहों द्रव्योंका संक्षेपसे
व्याख्यान जानना ।।५८।।
ऐसे तीन प्रकारकी आत्माका है कथन जिसमें ऐसे पहले महाधिकारमें द्रव्य-गुण
पर्यायके व्याख्यानकी मुख्यतासे सातवें स्थलमें तीन दोहा-सूत्र कहे आगे आदर करने योग्य
अतीन्द्रिय सुखसे तन्मयी जो निर्विकल्पभाव उसकी प्राप्तिके लिए शुद्ध गुण-पर्यायके
व्याख्यानकी मुख्यतासे आठ दोहा कहते हैं
इनमें पहले चार दोहोमें अनादि कर्मसम्बन्धका
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୫୮ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୧୦୩