Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
याद्रशः केवलज्ञानादिव्यक्तिरूपः कार्यसमयसारः, निर्मलो भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्म-
मलरहितः, ज्ञानमयः केवलज्ञानेन निर्वृत्तः केवलज्ञानान्तर्भूतानन्तगुणपरिणतः सिद्धो मुक्तो
मुक्तौ निवसति तिष्ठति देवः परमाराध्यः ता
द्रशः पूर्वोक्तलक्षणसद्रशः निवसति तिष्ठति ब्रह्मा
शुद्धबुद्धैकस्वभावः परमात्मा पर उत्कृष्टः क्व निवसति देहे केन शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन
कथंभूतेन शक्तिरूपेण हे प्रभाकरभट्ट भेदं मा कार्षीस्त्वमिति तथा चोक्तं श्रीकुन्द-
कुन्दाचार्यदेवैः मोक्षप्राभृते‘‘णमिएहिं जं णमिज्जइ झाइज्जइ झाइएहिं अणवरयं थुव्वंतेहिं
थुणिज्जइ देहत्थं किं पि तं मुणह ।। अत्र स एव परमात्मोपादेय इति भावार्थः ।।२६।।
ଭାଵାର୍ଥ :ଭାଵକର୍ମ, ଦ୍ରଵ୍ଯକର୍ମ, ନୋକର୍ମ ଏଵା ମଳଥୀ ରହିତ ଜ୍ଞାନମଯ-କେଵଳଜ୍ଞାନଥୀ
ରଚାଯେଲ-କେଵଳଜ୍ଞାନମାଂ ଅନ୍ତର୍ଭୂତ ଅନଂତଗୁଣରୂପେ ପରିଣତ, ସିଦ୍ଧ-ମୁକ୍ତ, କେଵଳଜ୍ଞାନାଦିନୀ ଵ୍ଯକ୍ତିରୂପ
କାର୍ଯସମଯସାରରୂପ ପରମ ଆରାଧ୍ଯ ଏଵା ଦେଵ ମୁକ୍ତିମାଂ ରହେ ଛେ ତେଵୋ ଜ ପୂର୍ଵୋକ୍ତ ଲକ୍ଷଣଵାଳୋ
ପରବ୍ରହ୍ମ ଶୁଦ୍ଧ ବୁଦ୍ଧ ଜେନୋ ଏକ ସ୍ଵଭାଵ ଛେ ଏଵୋ ଉତ୍କୃଷ୍ଟ ବ୍ରହ୍ମା-ପରମାତ୍ମା-
ଶୁଦ୍ଧଦ୍ରଵ୍ଯାର୍ଥିକନଯଥୀ ଶକ୍ତିରୂପେ ଦେହମାଂ ରହେ ଛେ. ତେଥୀ ହେ ପ୍ରଭାକରଭଟ୍ଟ! ତୁଂ ସିଦ୍ଧଭଗଵାନ ଅନେ
ପୋତାମାଂ ଭେଦ ନ କର. ମୋକ୍ଷପ୍ରାଭୃତ (ଗାଥା ୧୦୩)ମାଂ ଶ୍ରୀ କୁଂଦକୁଂଦାଚାର୍ଯଦେଵେ କହ୍ଯୁଂ
ପଣ ଛେ କେ
‘‘णमिएहिं जं णमिज्जइ झाइएहिं अणवरयं थुव्वंतेहिं थुणिज्जइ देहत्थं किं पि तं
मुणइ ।।’’
ଅର୍ଥ :ବୀଜାଓ ଵଡେ ଜେମନେ ନମସ୍କାର କରଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ ଏଵା ମହାପୁରୁଷୋଥୀ ପଣ
ଜେମନେ ନମସ୍କାର କରଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ, ବୀଜାଓ ଵଡେ ଜେମନେ ଧ୍ଯାଵଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ ଏଵା
ଆଚାର୍ଯପରମେଷ୍ଠୀ ଆଦିଥୀ ପଣ ଜେମନେ ଧ୍ଯାଵଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ ଅନେ ବୀଜାଓ ଵଡେ ଜେମନେ
ସ୍ତଵଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ ଏଵା ସତ୍ପୁରୁଷୋଥୀ ପଣ ଜେମନେ ସ୍ତଵଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ ଏଵୋ ଜେ କୋଈ
(ଜୀଵପଦାର୍ଥ) ଦେହମାଂ ରହେଲ ଛେ ତେ ପରମାତ୍ମାନେ ତୁଂ ଜାଣ.
ଅତ୍ରେ ତେ ଜ ପରମାତ୍ମା ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୨୬.
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୨୬ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୫୩
उत्कृष्ट शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकर शक्तिरूप परमात्मा [देहे ] शरीरमें [निवसति ] तिष्ठता है,
इसलिये हे प्रभाकरभट्ट, तूँ [भेदम् ] सिद्ध भगवान्में और अपनेमें भेद [मा कुरु ] मत कर
ऐसा ही मोक्षपाहुड़में श्री कुन्दकुन्दाचार्यने भी कहा है ‘‘णमिएहिं’’ इत्यादिइसका यह
अभिप्राय है कि जो नमस्कार योग्य महापुरुषोंसे भी नमस्कार करने योग्य है, स्तुति करने योग्य
सत्पुरुषोंसे स्तुति किया गया है, और ध्यान करने योग्य आचार्यपरमेष्ठी वगैरहसे भी ध्यान करने
योग्य ऐसा जीवनामा पदार्थ इस देहमें बसता है, उसको तूँ परमात्मा जान
भावार्थ :वही परमात्मा उपादेय है ।।२६।।