Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
हरिहरादिरिति । तद्यथा । योऽसौ पूर्वं बहुधा शुद्धात्मा भणितः स एव शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन
शुद्धोऽपि सन् अनादिसंतानागतज्ञानावरणादिकर्मबन्धप्रच्छादितत्वाद्वीतरागनिर्विकल्पसहजा-
नन्दैकसुखास्वादमलभमानो व्यवहारनयेन त्रसो भवति, स्थावरो भवति, स्त्रीपुंनपुंसकलिङ्गो
भवति, तेन कारणेन जगत्कर्ता भण्यते, नान्यः कोऽपि परकल्पितपरमात्मेति । अत्रायमेव
शुद्धात्मा परमात्मोपलब्धिप्रतिपक्षभूतवेदत्रयोदयजनितं रागादिविकल्पजालं निर्विकल्पसमाधिना
यदा विनाशयति तदोपादेयभूतमोक्षसुखसाधकत्वादुपादेय इतिभावार्थः ।।४०।।
अथ यस्य परमात्मनः केवलज्ञानप्रकाशमध्ये जगद्वसति जगन्मध्ये सोऽपि वसति तथापि
तद्रूपो न भवतीति १कथयति —
कर्ता कहा है, और शुद्धपनेरूप परिणत हुआ विभाव (विकार) परिणामोंको हरता है, इसलिये
हर्त्ता है । यह जीव ही ज्ञान अज्ञान दशाकर कर्त्ता-हर्त्ता है और दूसरे कोई भी हरिहरादिक कर्त्ता
-हर्त्ता नहीं है । पूर्व जो शुद्धात्मा कहा था, वह यद्यपि शुद्धनयकर शुद्ध है, तो भी अनादिसे
संसारमें ज्ञानावरणादि कर्म बंधकर ढका हुआ वीतराग, निर्विकल्पसहजानन्द, अद्वितीय सुखके
स्वादको न पानेसे व्यवहारनयकर त्रस और स्थावररूप स्त्री, पुरुष, नपुंसक लिंगादि सहित होता
है, इसलिये जगत्कर्त्ता कहा जाता है अन्य कोई भी दूसरोंकर कल्पित परमात्मा नहीं है । यह
आत्मा ही परमात्माकी प्राप्तिके शत्रु तीन वेदों (स्त्रीलिंगादि) कर उत्पन्न हुए रागादि विकल्प-
जालोंको निर्विकल्पसमाधिसे जिस समय नाश करता है, उसी समय उपादेयरूप मोक्ष-सुखका
कारण होनेसे उपादेय हो जाता है ।।४०।।
आगे जिस परमात्माके केवलज्ञानस्वरूप प्रकाशमें जगत् बस रहा है, और जगत्के
ଦ୍ରଵ୍ଯାର୍ଥିକନଯଥୀ ଶୁଦ୍ଧ ହୋଵା ଛତାଂ, ପଣ ଅନାଦିଥୀ ସଂତାନରୂପେ ଚାଲ୍ଯା ଆଵତା ଜ୍ଞାନାଵରଣାଦି
କର୍ମବଂଧଥୀ ଢଂକାଯେଲୋ ହୋଵାଥୀ ଵୀତରାଗନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସହଜାନଂଦରୂପ ଏକ (କେଵଳ) ସୁଖାସ୍ଵାଦନେ ନହି
ପାମତୋ, ଵ୍ଯଵହାରନଯଥୀ ତ୍ରସ ଥାଯ ଛେ, ସ୍ଥାଵର ଥାଯ ଛେ, ତଥା ସ୍ତ୍ରୀ-ପୁରୁଷ କେ ନପୁଂସକଲିଂଗରୂପ ଥାଯ
ଛେ, ତେ କାରଣେ ତେନେ ଜଗତନୋ କର୍ତା କହେଵାମାଂ ଆଵେ ଛେ, ଏ ସିଵାଯ ପରକଲ୍ପିତ (ବୀଜାଓଏ କଲ୍ପେଲ)
ବୀଜୋ କୋଈ ପରମାତ୍ମା ଜଗତକର୍ତା ନଥୀ.
ଅହୀଂ ଆ ଜ ଶୁଦ୍ଧ ଆତ୍ମା, ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସମାଧି ଵଡେ ପରମାତ୍ମାନୀ ପ୍ରାପ୍ତିଥୀ ପ୍ରତିପକ୍ଷଭୂତ ତ୍ରଣ
ପ୍ରକାରନା ଵେଦୋଦଯ ଜନିତ ରାଗାଦି ଵିକଲ୍ପନୀ ଜାଳନୋ ଜ୍ଯାରେ ନାଶ କରେ ଛେ, ତ୍ଯାରେ (ଆ ଜ ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମା)
ଉପାଦେଯଭୂତ ମୋକ୍ଷସୁଖନୋ ସାଧକ ହୋଵାଥୀ ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ଭାଵାର୍ଥ ଛେ. ୪୦.
ହଵେ ଜେ ପରମାତ୍ମାନା କେଵଳଜ୍ଞାନରୂପ ପ୍ରକାଶମାଂ ଜଗତ ରହେ ଛେ, ଅନେ ତେ ପରମାତ୍ମା ପଣ
ଜଗତମାଂ ରହେ ଛେ, ତୋ ପଣ ତେ ତେ-ରୂପ (ଜଗତରୂପ) ଥତୋ ନଥୀ ଏମ କହେ ଛେ : —
୧. ପାଠାନ୍ତର : — कथयति = कथयन्ति
୭୨ ]ଯୋଗୀନ୍ଦୁଦେଵଵିରଚିତ: [ ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୦