Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
राधानासमर्थेन जिनवरैर्देहेऽपि द्रष्टः तमेव परमात्मानं मन्यस्व जानीहि वीतरागपरम-
समाधिबलेनानुभवेत्यर्थः । अत्र य एव परमात्मा कृष्णनीलकापोतलेश्यास्वरूपादिसमस्त-
विभावरहितेन शुद्धात्मोपलब्धिध्यानेन जिनवरैर्देहेऽपि द्रष्टः स एव साक्षादुपादेय इति
तात्पर्यार्थः ।।४३।।
अथ येन देहे वसता पञ्चेन्द्रियग्रामो वसति गतेनोद्वसो भवति स एव परमात्मा
भवतीति कथयति —
४४) देहि वसंतेँ जेण पर इंदिय-गामु वसेइ ।
उव्वसु होइ गएण फु डु सो परमप्पु हवेइ ।।४४।।
देहे वसता येन परं इन्द्रियग्रामः वसति ।
उद्वसो भवति गतेन स्फु टं स परमात्मा भवति ।।४४।।
देहे वसता येन परं नियमेनेन्द्रियग्रामो वसति येनात्मना निश्चयेनातीन्द्रियस्वरूपेणापि-
शुद्धात्मकी प्राप्तिरूप ध्यानकर जिनवरदेवने देहमें देखा है, वही साक्षात् उपादेय है ।।४३।।
आगे देहमें जिसके रहनेसे पाँच इन्द्रियरूप गाँव बसता है, और जिसके निकलनेसे
पंचेन्द्रियरूप गाँव उजड़ हो जाता है, वह परमात्मा है, ऐसा कहते हैं —
गाथा – ४४
अन्वयार्थ : — [येन परं देहे वसता ] जिसके केवल देहमें रहनेसे [इन्द्रियग्रामः ]
इन्द्रिय गाँव [वसति ] रहता है, [गतेन ] और जिसके परभवमें चले जानेपर [उद्धसः स्फु टं
भवति ] उजड़ निश्चयसे हो जाता है [स परमात्मा ] वह परमात्मा [भवति ] है ।।
भावार्थ : — शुद्धात्मासे जुदी ऐसी देहमें बसते आत्मज्ञानके अभावसे ये इन्द्रियाँ अपने
अपने विषयोंमें (रूपादिमें) प्रवर्तती हैं, और जिसके चले जानेपर अपने अपने विषय-व्यापारसे
ଅହୀଂ ଜେ ପରମାତ୍ମାନେ କୃଷ୍ଣ, ନୀଲ, କାପୋତଲେଶ୍ଯାସ୍ଵରୂପ ଆଦି ସମସ୍ତ ଵିଭାଵଥୀ ରହିତ
ଶୁଦ୍ଧାତ୍ମାନୀ ଉପଲବ୍ଧିରୂପ ଧ୍ଯାନଵଡେ ଜିନଵରେ ଦେହମାଂ ପଣ ଦେଖ୍ଯୋ ଛେ ତେ ଜ ଉପାଦେଯ ଛେ ଏଵୋ ତାତ୍ପର୍ଯାର୍ଥ
ଛେ. ୪୩.
ହଵେ ଦେହମାଂ ଜେନା ରହେଵାଥୀ ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯରୂପ ଗାମ ଵସେ ଛେ ଅନେ ଜେନା ଜଵାଥୀ ପାଂଚ
ଇନ୍ଦ୍ରିଯରୂପ ଗାମ ଉଜ୍ଜଡ ଥାଯ ଛେ, ତେ ଜ ପରମାତ୍ମା ଛେ ଏମ କହେ ଛେ : —
ଭାଵାର୍ଥ : — ଦେହମାଂ ଜେ ରହେତାଂ ନିଯମଥୀ ଇନ୍ଦ୍ରିଯଗାମ ଵସେ ଛେ – ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ଅତୀନ୍ଦ୍ରିଯ
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୪ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୭୭