Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Oriya transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ଶ୍ରୀ ଦିଗଂବର ଜୈନ ସ୍ଵାଧ୍ଯାଯମଂଦିର ଟ୍ରସ୍ଟ, ସୋନଗଢ - ୩୬୪୨୫୦
यो निजकरणैः पञ्चभिरपि पञ्चापि विषयान् मनुते जानाति तद्यथा यः कर्ता
शुद्धनिश्चयनयेनातीन्द्रियज्ञानमयोऽपि अनादिबन्धवशात् असद्भूतव्यवहारेणेन्द्रियमयशरीरं गृहीत्वा
स्वयमर्थान् ग्रहीतुमसमर्थत्वात्पञ्चेन्द्रियैः कृत्वा पञ्चविषयान् जानाति, इन्द्रियज्ञानेन
परिणमतीत्यर्थः
पुनश्च कथंभूतः मुणिउ ण पंचहिं पंचहिं वि सो परमप्पु हवेइ मतो न
ज्ञातो न पञ्चभिरिन्द्रियैः पञ्चभिरपि स्पर्शादिविषयैः तथाहिवीतरागनिर्विकल्प-
स्वसंवेदनज्ञान-विषयोऽपि पञ्चेन्द्रियैश्च न ज्ञात इत्यर्थः स एवंलक्षणः परमात्मा भवतीति अत्र
य एव पञ्चेन्द्रियविषयसुखास्वादविपरीतेन वीतरागनिर्विकल्पपरमानन्दसमरसीभावसुख-
रसास्वादपरिणतेन समाधिना ज्ञायते स एवात्मोपादानसिद्धमित्यादिविशेषणविशिष्ट-
अपनी पाँचों इन्द्रियो द्वारा [पञ्चापि विषयान् ] रूपादि पाँचों ही विषयोंको जानता है, अर्थात्
इन्द्रियज्ञानरूप परिणमन करके इन्द्रियोंसे रूप, रस, गंध, शब्द, स्पर्शको जानता है, और आप
[पञ्चभिः ] पाँच इन्द्रियोंकर तथा [पञ्चभिरपि ] पाँचों विषयोंसे सो [मतो न ] नहीं जाना
जाता, अगोचर है, [स परमात्मा ] ऐसे लक्षण जिसके हैं, वही परमात्मा [भवति ] है
भावार्थ :पाँच इन्द्रियोंके विषयसुखके आस्वादसे विपरीत, वीतराग-निर्विकल्प
परमानन्द समरसीभावरूप, सुखके रसका आस्वादरूप, परमसमाधि करके जो जाना जाता है,
वही परमात्मा है, वह ज्ञानगम्य है, इन्द्रियोंसे अगम्य है, और उपादेयरूप अतीन्द्रिय सुखका
साधन अपना स्वभावरूप वही परमात्मा आराधने योग्य है
।।४५।।
ହଵେ ଜେ ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋଵଡେ ପାଂଚ ଵିଷଯୋନେ ଜାଣେ ଛେ ପଣ ଜେ ତେମନା ଵଡେ (ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋ
ଅନେ ପାଂଚ ଵିଷଯୋ ଵଡେ) ଜଣାତୋ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମା ଛେ ଏମ କହେ ଛେ :
ଭାଵାର୍ଥ :ଜେ ପୋତାନୀ ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋ ଵଡେ ପାଂଚ ଵିଷଯୋନେ ଜାଣେ ଛେ, ଜେ ଶୁଦ୍ଧ
ନିଶ୍ଚଯନଯଥୀ ଅତୀନ୍ଦ୍ରିଯ ଜ୍ଞାନମଯ ହୋଵା ଛତାଂ ପଣ ଅନାଦିବଂଧନା ଵଶେ ଅସଦ୍ଭୂତ ଵ୍ଯଵହାରଥୀ
ଇନ୍ଦ୍ରିଯମଯ ଶରୀର ଗ୍ରହୀନେ, ସ୍ଵଯଂ ଅର୍ଥୋନେ ଜାଣଵାନେ ଅସମର୍ଥ ହୋଵାଥୀ ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋ ଦ୍ଵାରା ପାଂଚ
ଵିଷଯୋନେ ଜାଣେ ଛେ ଅର୍ଥାତ୍ ଇନ୍ଦ୍ରିଯ ଜ୍ଞାନରୂପେ ପରିଣମେ ଛେ, ଅନେ ଜେ ପାଂଚ ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋ ଅନେ ପାଂଚ ସ୍ପର୍ଶାଦି
ଵିଷଯୋଥୀ ଜଣାତୋ ନଥୀ ଅର୍ଥାତ୍ ଵୀତରାଗ ନିର୍ଵିକଲ୍ପ ସ୍ଵସଂଵେଦନଜ୍ଞାନନୋ ଵିଷଯ ହୋଵା ଛତାଂ ପାଂଚ
ଇନ୍ଦ୍ରିଯୋଥୀ (ଅନେ ପାଂଚ ଵିଷଯୋଥୀ) ଜଣାତୋ ନଥୀ, ତେ ପରମାତ୍ମା ଛେ.
ଅହୀଂ ପଂଚେନ୍ଦ୍ରିଯଵିଷଯନା ସୁଖନା ଆସ୍ଵାଦଥୀ ଵିପରୀତ ଵୀତରାଗ, ନିର୍ଵିକଲ୍ପ, ପରମାନଂଦରୂପ,
ସମରସୀଭାଵମଯ ସୁଖରସନା ଆସ୍ଵାଦରୂପେ ପରିଣତ ସମାଧି ଵଡେ, ଜେ ପରମାତ୍ମା ଜଣାଯ ଛେ ତେ ଜ
‘‘
ଆତ୍ମୋପାଦାନଥୀ ସିଦ୍ଧ’’ ଇତ୍ଯାଦି ଵିଶେଷଣଥୀ ଵିଶିଷ୍ଟ, ଉପାଦେଯଭୂତ ଅତୀନ୍ଦ୍ରିଯ ସୁଖନୋ ସାଧକ
୧. ଆ ଶ୍ଲୋକ ବୀଜା ଅଧିକାରମାଂ ଗାଥା-୭ନୀ ଟୀକାମାଂ ଆଵେଲ ଛେ.
ଅଧିକାର-୧ : ଦୋହା-୪୫ ]ପରମାତ୍ମପ୍ରକାଶ: [ ୭୯