Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-53 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
प्राप्नोतीति अत्र येनैव ज्ञानेन व्यापको भण्यते तदेवोपादेयस्यानन्तसुखस्याभिन्नत्वादुपादेय-
मित्यभिप्रायः ।।५२।।
अथ येन कारणेन निजबोधं लब्ध्वात्मन इन्द्रियज्ञानं नास्ति तेन कारणेन जडो
भवतीत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा सूत्रमिदं कथयति
५३) जे णिय-बोह-परिट्ठियहँ जीवहँ तुट्टइ णाणु
इंदिय-जणियउ जोइया तिं जिउ जडु वि वियाणु ।।५३।।
येन निजबोधप्रतिष्ठितानां जीवानां त्रुटयति ज्ञानम्
इन्द्रियजनितं योगिन् तेन जीवं जडमपि विजानीहि ।।५३।।
येन कारणेन निजबोधप्रतिष्ठितानां जीवानां त्रुटयति विनश्यति किं कर्तृ ज्ञानम्
அஹீஂ ஜே ஜ்ஞாநதீ வ்யாபக கஹேவாமாஂ ஆவே சே தே ஜ்ஞாந ஜ உபாதேயபூத அநஂத ஸுகதீ
அபிந்ந ஹோவாதீ உபாதேய சே ஏவோ அபிப்ராய சே. ௫௨.
ஹவே ஜே காரணே நிஜபோத பாமீநே ஆத்மாஓநே இந்த்ரியஜ்ஞாந ஹோதுஂ நதீ தே காரணே ஆத்மா
‘ஜட’ சே, ஏவோ அபிப்ராய மநமாஂ ராகீநே ஆ ஸூத்ர கஹே சே.
है, यह अभिप्राय जानना इस दोहामें जीवको ज्ञानकी अपेक्षा सर्वगत कहा है ।।५२।।
आगे आत्म-ज्ञानको पाकर इन्द्रिय-ज्ञान नाशको प्राप्त होता है, परमसमाधिमें
आत्मस्वरूपमें लीन है, परवस्तुकी गम्य नहीं है, इसलिये नयप्रमाणकर जड़ भी है, परन्तु
ज्ञानाभावरूप जड़ नहीं है, चैतन्यरूप ही है, अपेक्षासे जड़ कहा जाता है, यह अभिप्राय मनमें
रखकर गाथा-सूत्र कहते हैं
गाथा५३
अन्वयार्थ :[येन ] जिस अपेक्षा [निजबोधप्रतिष्ठितानां ] आत्म-ज्ञानमें ठहरे हुए
[जीवानां ] जीवोंके [इन्द्रियजनितं ज्ञानम् ] इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुआ ज्ञान [त्रुटयति ] नाशको
प्राप्त होता है, [हे योगिन् ] हे योगी, [तेन ] उसी कारणसे [जीवं ] जीवको [जडमपि ] जड़
भी [विजानीहि ] जानो
भावार्थ :जिस अपेक्षा आत्म-ज्ञानमें ठहरे हुए जीवोंके इन्द्रियोंसे उत्पन्न हुआ ज्ञान
௧. பாடாந்தர : नास्ति = नश्यति
௯௦ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௫௩