Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-65* (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
௧௧௬ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௬௦௫
परमभावके ग्रहण करनेवाले शुद्धनिश्चयनयसे नहीं करता है, बंध और मोक्षसे रहित है, ऐसा
भगवानने कहा है
यहाँ जो शुद्धनिश्चयनयकर बंध और मोक्षका कर्ता नहीं, वही शुद्धात्मा
आराधने योग्य है ।।६५।।
आगे दोहा-सूत्रोंकी स्थल-संख्यासे बाहर उक्तं च स्वरूप प्रक्षेपकको कहते हैं
गाथा६५
अन्वयार्थ :[अत्र ? ] इस जगतमें [स (कः अपि) ] ऐसा कोई भी [प्रदेशः
नास्ति ] प्रदेश (स्थान) नहीं है, कि [यत्र ] जिस जगह [चतुरशीतियोनिलक्षमध्ये ] चौरासी
लाख योनियोंमें होकर [जिनवचनं न लभमानः ] जिन-वचनको नहीं प्राप्त करता हुआ
[जीवः ] यह जीव [न भ्रमितः ] नहीं भटका
भावार्थ :इस जगतमें कोई ऐसा स्थान नहीं रहा, जहाँपर यह जीव निश्चय व्यवहार
रत्नत्रयको कहनेवाले जिन वचनको नहीं पाता हुआ अनादि कालसे चौरासी लाख योनियोंमें
அஹீஂ, ஜே ஶுத்தநிஶ்சயநயதீ பஂதமோக்ஷநே கரதோ நதீ தே ஜ ஶுத்த ஆத்மா உபாதேய சே, ஏவோ
பாவார்த சே. ௬௫.
ஹவே தோஹா-ஸூத்ரோநீ ஸ்தலஸஂக்யாதீ பஹார ப்ரக்ஷேபகநே கஹே சே :
பாவார்த :ஆ ஜகதமாஂ ஏவோ கோஈ பண ப்ரதேஶ நதீ கே ஜ்யாஂ சோராஶீலாக யோநிமாஂ-
तथापि शुद्धपारिणामिकपरमभावग्राहकेन शुद्धनिश्चयनयेन न करोत्येवं भणति कोऽसौ निश्चय
इति अत्र य एव शुद्धनिश्चयेन बन्धमोक्षौ न करोति स एव शुद्धात्मोपादेय इति
भावार्थः ।।६५।।
अथ स्थलसंख्याबाह्यं प्रक्षेपकं कथयति
६५) सो णत्थि त्ति पएसो चउरासीजोणिलक्खमज्झम्मि
जिण वयणं ण लहंतो जत्थ ण डुलुडुल्लिओ जीवो ।।६५।।
स नास्ति इति प्रदेशः चतुरशीतियोनिलक्षमध्ये
जिनवचनं न लभमानः यत्र न भ्रमितः जीवः ।।६५।।
सो णत्थि त्ति पएसो स प्रदेशो नास्त्यत्र जगति स किम् चउरासी-
जोणिलक्खमज्झम्मि जिणवयणं ण लहंतो जत्थ ण डुलुडुल्लिओ जीवो चतुरशीतियोनिलक्षेषु
मध्ये भूत्वा जिनवचनमलभमानो यत्र न भ्रमितो जीव इति
तथाहि भेदाभेदरत्नत्रयप्रति-