Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
அதிகார-௧ : தோஹா-௭௭ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௧௩௩
उस मिथ्यात्व परिणामसे शुद्धात्माके अनुभवसे पराङ्मुख अनेक तरहके कर्मोंको बाँधता है,
जिनसे कि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भावरूपी पाँच प्रकारके संसारमें भटकता है । ऐसा कोई
शरीर नहीं, जो इसने न धारण किया हो, ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, कि जहाँ उपजा न हो, और
मरण किया हो, ऐसा कोई काल नहीं है, कि जिसमें इसने जन्म-मरण न किये हों, ऐसा कोई
भव नहीं, जो इसने पाया न हो, और ऐसे अशुद्ध भाव नहीं हैं, जो इसके न हुए हों । इस
तरह अनंत परावर्तन इसने किये हैं । ऐसा ही कथन मोक्षपाहुड़में निश्चय मिथ्यादृष्टिके लक्षणमें
श्रीकुंदकुंदाचार्यने कहा है — ‘‘जो पुण’’ इत्यादि । इसका अर्थ यह है कि जो अज्ञानी जीव
द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्मरूप परद्रव्यमें लीन हो रहे हैं, वे साधुके व्रत धारण करने पर भी
मिथ्यादृष्टि ही हैं, सम्यग्दृष्टि नहीं और मिथ्यात्वकर परिणमते दुःख देनेवाले आठ कर्मोंको बाँधते
हैं । फि र भी आचार्यने मोक्षपाहुडमें कहा है — ‘‘जे पज्जयेसु’’ इत्यादि । उसका अर्थ यह है,
कि जो नर नारकादि पर्यायोंमें मग्न हो रहे हैं, वे जीव परपर्यायमें रत मिथ्यादृष्टि हैं, ऐसा
परिणामस्य फ लं कथ्यते । बंधइ बहुविहकम्मडा जें संसारु भमेइ बध्नाति
बहुविधकर्माणि यैः संसारं भ्रमति, येन मिथ्यात्वपरिणामेन शुद्धात्मोपलब्धेः
प्रतिपक्षभूतानि बहुविधकर्माणि बध्नाति तैश्च कर्मभिर्द्रव्यक्षेत्रकालभवभावरूपं पञ्चप्रकारं
संसारं परिभ्रमतीति । तथा चोक्तं मोक्षप्राभृते निश्चयमिथ्याद्रष्टिलक्षणम् — ‘‘जो पुणु
परदव्वरओ मिच्छादिट्ठी हवेइ सो साहू । मिच्छत्तपरिणदो उण बज्झदि दुट्ठट्ठकम्मेहिं ।।’’
पुनश्चोक्तं तैरेव — ‘‘जे पज्जएसु णिरदा जीवा परसमइग त्ति णिद्दिट्ठा । आदसहावम्मि
ठिदा ते सगसमया मुणेयव्वा ।।’’ अत्र स्वसंवित्तिरूपाद्वीतरागसम्यक्त्वात् प्रतिपक्षभूतं
ஆட மத, ஆட மல, ச அநாயதந ஏ பச்சீஸ தோஷோ ஜேமாஂ ஸமாய சே ஏவீ மித்யா விதத
(கோடீ) வ்யலீக (பநாவடீ) த்ரஷ்டி – அபிப்ராய, ருசி, ப்ரத்யய, ஶ்ரத்தாந – ஜேநே சே தே மித்யாத்ரஷ்டி ஹோய
சே.
தேநா மித்யா பரிணாமநுஂ பள கஹே சே : — தே அநேக ப்ரகாரநாஂ கர்மோ பாஂதே சே கே ஜேதீ
ஸஂஸாரமாஂ பரிப்ரமண கரே சே – ஜே மித்யாத்வபரிணாமதீ ஶுத்தாத்மோபலப்திதீ ப்ரதிபக்ஷபூத பஹுவித கர்மோ
பாஂதே சே, தே ஜ கர்மோதீ த்ரவ்ய, க்ஷேத்ர, காள, பாவரூப பாஂச ப்ரகாரநா ஸஂஸாரமாஂ பமே சே. (ஶ்ரீ
குஂதகுஂதாசார்யதேவக்ருத) மோக்ஷப்ராப்ருத (காதா ௧௫)மாஂ நிஶ்சயமித்யாத்ரஷ்டிநுஂ லக்ஷண பண கஹ்யுஂ சே கே : —
‘‘जो पुणु परदव्वरओ मिच्छादिट्ठी हवेइ सो साहू । मिच्छत्तपरिणदो उण बज्झदि दुट्ठट्ठकम्मेहिं’’ (அர்த: —
வளீ ஜே பரத்ரவ்யமாஂ ரத சே தே ஸாது மித்யாத்ரஷ்டி ஹோய சே, மித்யாத்வரூபே பரிணமேலோ தே துஷ்ட ஆட
கர்மநே பாஂதே சே. ) வளீ தேஓஏ பண கஹ்யுஂ சே கே (ப்ரவசநஸார ௨--௯௪) ‘‘जे पज्जयेसु णिरदा जीवा
परसमयिगत्ति णिदिट्ठा । आदसहावम्मि ठिदा ते सगसमया मुणेयव्वा ।।(அர்த: — ஜே ஜீவோ பர்யாயோமாஂ