Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Telugu transliteration). Gatha-60 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
శ్రీ దిగంబర జైన స్వాధ్యాయమందిర ట్రస్ట, సోనగఢ - ౩౬౪౨౫౦
अथ व्यवहारनयेन जीवः पुण्यपापरूपो भवतीति प्रतिपादयति
६०) एहु ववहारेँ जीवडउ हेउ लहेविणु कम्मु
बहुविह-भावेँ परिणवइ तेण जि धम्मु अहम्मु ।।६०।।
एष व्यवहारेण जीवः हेतुं लब्ध्वा कर्म
बहुविधभावेन परिणमति तेन एव धर्मः अधर्मः ।।६०।।
एहु ववहारें जीवडउ हेउ लहेविणु कम्मु एष प्रत्यक्षीभूतो जीवो व्यवहारनयेन हेतुं
लब्ध्वा किम् कर्मेति बहुविहभावें परिणवइ तेण जि धम्मु अहम्मु बहुविधभावेन
विकल्पज्ञानेन परिणमति तेनैव कारणेन धर्मोऽधर्मश्च भवतीति तद्यथा एष जीवः शुद्धनिश्चयेन
जो बंध न हो तो मुक्त कहना निरर्थक है ।।५९।।
आगे व्यवहारनयसे यह जीव पुण्य-पापरूप होता है, ऐसा कहते हैं
गाथा६०
अन्वयार्थ :[एष जीवः ] यह जीव [व्यवहारेण ] व्यवहारनयकर [कर्म हेतुं ]
कर्मरूप करणको [लब्ध्वा ] पाकरके [बहुविधभावेन ] अनेक विकल्परूप [परिणमित ]
परिणमता है
[तेन एव ] इसीसे [धर्मः अधर्मः ] पुण्य और पापरूप होता है
भावार्थ :यह जीव शुद्ध निश्चयनयकर वीतराग चिदानन्द स्वभाव है, तो भी
व्यवहारनयकर वीतराग निर्विकल्प स्वसंवेदनज्ञानके अभावसे रागादिरूप परिणमनेसे उपार्जन
किये शुभ-अशुभ कर्मोंके कारणको पाकर पुण्यी तथा पापी होता है
यद्यपि यह
व्यवहारनयकर पुण्य-पापरूप है, तो भी परमात्माकी अनुभूतिसे तन्मयी जो वीतराग
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और बाह्य पदार्थोंमें इच्छाके रोकनेरूप तप, ये चार निश्चयआराधना
హవే వ్యవహారనయథీ జీవ పుణ్య-పాపరూప థాయ ఛే, ఏమ కహే ఛే :
భావార్థ :ఆ జీవ శుద్ధ నిశ్చయనయథీ వీతరాగ చిదానంద జేనో ఏక స్వభావ ఛే ఏవో
హోవా ఛతాం పణ వ్యవహారనయథీ వీతరాగ నిర్వికల్ప స్వసంవేదననా అభావథీ ఉపార్జిత ఏవా
శుభాశుభ కర్మరూప కారణనే పామీనే పుణ్యరూప అనే పాపరూప థాయ ఛే.
అహీం జో కే వ్యవహారనయథీ జీవ పుణ్యపాపరూప థాయ ఛే, తో పణ పరమాత్మానీ
అనుభూతినీ సాథే అవినాభావీ వీతరాగసమ్యగ్దర్శనజ్ఞానచారిత్ర అనే బాహ్య పదార్థోమాం ఇచ్ఛానో
౧౦౬ ]యోగీన్దుదేవవిరచిత: [ అధికార-౧ : దోహా-౬౦