Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Telugu transliteration).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
శ్రీ దిగంబర జైన స్వాధ్యాయమందిర ట్రస్ట, సోనగఢ - ౩౬౪౨౫౦
భావార్థ :జేవీ రీతే మేఘపటలమాంథీ నీకళేలా సూర్యనాం కిరణోనీ ప్రభా ప్రగట థఈ
ఛే తేవీ రీతే జేఓ కర్మపటలనా విలయ టాణే (కర్మరూపీ మేఘపటలనో విలయ థతాం) సకల
విమల కేవళజ్ఞానాది అనంతచతుష్టయనీ వ్యక్తిరూప, లోకాలోకనే ప్రకాశవానే సమర్థ, సర్వప్రకారే
ఉపాదేయభూత కార్యసమయసారరూప పరిణమ్యా ఛే. కయా నయనీ వివక్షాథీ (తేఓ కార్యసమయసారరూప
సిద్ధపరమాత్మా) థయా ఛే? జేవీ రీతే ధాతుపాషాణ సువర్ణపర్యాయరూప పరిణతినీ ప్రగటతారూపే థయో
ఛే తేవీ రీతే తేఓ సిద్ధపర్యాయరూప పరిణతినీ ప్రగటతారూపే థయా ఛే, శ్రీ పంచాస్తికాయ
(గాథా-౨౦)మాం కహ్యుం ఛే కే :
పర్యాయార్థికనయథీ ‘‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो’’ (జీవ అభూతపూర్వ సిద్ధ థాయ ఛే),
ద్రవ్యార్థికనయథీ తో జేవీ రీతే ధాతుపాషాణమాం సువర్ణ శక్తిరూపే రహేల ఛే తేవీ రీతే, శక్తి-
అపేక్షాఏ జీవ ప్రథమథీ జ శుద్ధ, బుద్ధ ఏక స్వభావవాళో ఛే. ద్రవ్యసంగ్రహ (గాథా-౧౩౩)మాం
जे जाया ये केचन कर्तारो महात्मानो जाता उत्पन्नाः केन कारणभूतेन झाणग्गियए
ध्यानाग्निना किं कृत्वा पूर्वम् कम्मकलंक डहेविकर्मकलङ्कमलान् दग्ध्वा भस्मीकृत्वा
कथंभूताः जाताः णिच्चणिरंजणणाणमय नित्यनिरञ्जनज्ञानमयाः ते परमप्प णवेवि
तान्परमात्मनः कर्मतापन्नान्नत्वा प्रणम्येतितात्पर्यार्थव्याख्यानं समुदायकथनं संपिण्डितार्थ-
निरूपणमुपोद्धातः संग्रहवाक्यं वार्तिकमिति यावत्
इतो विशेषः तद्यथाये जाता उत्पन्ना
मेघपटलविनिर्गतदिनकरकिरणप्रभावात्कर्मपटलविघटनसमये सकलविमलकेवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टय-
व्यक्ति रूपेण लोकालोकप्रकाशनसमर्थेन सर्वप्रकारोपादेयभूतेन कार्यसमयसाररूप परिणताः
कया
नयविवक्षया जाताः सिद्धपर्यायपरिणतिव्यक्त रूपतया धातुपाषाणे सुवर्णपर्यायपरिणतिव्यक्ति वत्
तथा चोक्तं पञ्चास्तिकायेपर्यायार्थिकनयेन ‘‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धाे’’, द्रव्यार्थिकनयेन पुनः
అధికార-౧ : దోహా-౧ ]పరమాత్మప్రకాశ: [ ౯
भावाथर् :जैसे मेघ-पटलसे बाहर निकली हुई सूर्यकी किरणोंकी प्रभा प्रबल होती
है, उसी तरह कर्मरूप मेघसमूहके विलय होनेपर अत्यंत निर्मल केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयकी
प्रगटतास्वरूप परमात्मा परिणत हुए हैं
अनंतचतुष्टय अर्थात् अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख,
अनंतवीर्य, ये अनंतचतुष्टय सब प्रकार अंगीकार करने योग्य हैं, तथा लोकालोकके प्रकाशनको
समर्थ हैं
जब सिद्धपरमेष्ठी अनंतचतुष्टयरूप परिणमे, तब कार्य-समयसार हुए अंतरात्म
अवस्थामें कारण-समयसार थे जब कार्यसमयसार हुए तब सिद्धपर्याय परिणतिकी प्रगटता
रूपकर शुद्ध परमात्मा हुए जैसे सोना अन्य धातुके मिलापसे रहित हुआ, अपने सोलहवानरूप
प्रगट होता है, उसी तरह कर्म-कलंक रहित सिद्धपर्यायरूप परिणमे तथा पंचास्तिकाय ग्रंथमें
भी कहा हैजो पर्यायार्थिकनयकर ‘अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो’ अर्थात् जो पहले सिद्धपर्याय