Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Telugu transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 11 of 565
PDF/HTML Page 25 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
శ్రీ దిగంబర జైన స్వాధ్యాయమందిర ట్రస్ట, సోనగఢ - ౩౬౪౨౫౦
వీతరాగ పరమానందమయ సమరసీభావసుఖరసనా ఆస్వాదరూప ఛే ఏమ జాణవుం.
శుం కరీనే (తేఓ కార్యసమయసారరూప సిద్ధ పరమాత్మా) థయా ఛే? కర్మమళరూప కలంకోనే దగ్ధ
కరీనే (తేఓ కార్యసమయసారరూప సిద్ధ పరమాత్మా థయా ఛే.) అహీం ‘కర్మమళ’ శబ్దథీ ద్రవ్యకర్మో అనే
భావకర్మో సమజవాం. పుద్గలపిండరూప జ్ఞానావరణాది ఆఠ ద్రవ్యకర్మో ఛే అనే రాగాదిసంకల్పవికల్పరూప
భావకర్మో ఛే. ద్రవ్యకర్మోనుం దహన అనుపచరిత అసద్భూత వ్యవహారనయథీ ఛే అనే భావకర్మోనుం దహన
అశుద్ధ నిశ్చయనయథీ ఛే, శుద్ధ నిశ్చయనయథీ తో బంధమోక్ష నథీ.
ఆవా కర్మమళరూపీ కలంకోనే దగ్ధ కరీనే తేఓ కేవా థయా ఛే? ఆవా కర్మమళరూపీ కలంకోనే
దగ్ధ కరీనే తేఓ నిత్య నిరంజన జ్ఞానమయ థయా ఛే (౧) క్షణిక ఏకాంతవాదీ సౌగత (బౌద్ధ) మతనే
అనుసరనార శిష్య ప్రతి ద్రవ్యార్థికనయథీ నిత్య టంకోత్కీర్ణ జ్ఞాయక ఏక జేనో స్వభావ ఛే ఏవా
పరమాత్మద్రవ్య ఛే ఏమ స్థాపవా మాటే ‘‘నిత్య’’ విశేషణ ఆపవామాం ఆవ్యుం ఛే, (౨) సో కల్పకాళ
भावसुखरसास्वादरूपमितिज्ञातव्यम् किं कृत्वा जाताः कर्ममलकलङ्कान् दग्ध्वा कर्ममलशब्देन
द्रव्यकर्मभावकर्माणि गृह्यन्ते पुद्गलपिण्डरूपाणि ज्ञानावरणादीन्यष्टौ द्रव्यकर्माणि,
रागादिसंकल्पविकल्परूपाणि पुनर्भावकर्माणि द्रव्यकर्मदहनमनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयेन,
भावकर्मदहनं पुनरशुद्धनिश्चयेन शुद्धनिश्चयेन बन्धमोक्षौ न स्तः इत्थंभूतकर्ममलकलङ्कान् दग्ध्वा
कथंभूता जाताः नित्यनिरञ्जनज्ञानमयाः क्षणिकैकान्तवादिसौगत-मतानुसारिशिष्यं प्रति
द्रव्यार्थिकनयेन नित्यटङ्कोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावपरमात्मद्रव्यव्यवस्थापनार्थं नित्यविशेषणं कृतम्
अथ कल्पशते गते जगत् शून्यं भवति पश्चात्सदाशिवे जगत्करणविषये चिन्ता भवति तदनन्तरं
मुक्ति गतानां जीवानां कर्माञ्जनसंयोगं कृत्वा संसारे पतनं करोतीति नैयायिका वदन्ति,
అధికార-౧ : దోహా-౧ ]పరమాత్మప్రకాశ: [ ౧౧
चिंतवन वह पिंडस्थ है, सर्व चिद्रूप (सकल परमात्मा) जो अरहंतदेव उनका ध्यान वह रूपस्थ
है, और निरंजन (सिद्धभगवान्) का ध्यान रूपातीत कहा जाता है
वस्तुके स्वभावसे विचारा
जावे, तो शुद्ध आत्माका सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप अभेद रत्नत्रयमई जो
निर्विकल्प समाधि है, उससे उत्पन्न हुआ वीतराग परमानंद समरसी भाव सुखरसका आस्वाद
वही जिसका स्वरूप है, ऐसा ध्यानका लक्षण जानना चाहिये
इसी ध्यानके प्रभावसे कर्मरूपी
मैल वही हुआ कलंक, उनको भस्मकर सिद्ध हुए कर्म-कलंक अर्थात् द्रव्यकर्म भावकर्म
इनमेंसे जो पुद्गलपिंडरूप ज्ञानावरणादि आठ कर्म वे द्रव्यकर्म हैं, और रागादिक संकल्प
-विकल्प परिणाम भावकर्म कहे जाते हैं
यहाँ भावकर्मका दहन अशुद्ध निश्चयनयकर हुआ,
तथा द्रव्यकर्मका दहन असद्भुत अनुपचरितव्यवहारनयकर हुआ और शुद्ध निश्चयकर तो जीवके
बंध मोक्ष दोनों ही नहीं है
इस प्रकार कर्मरूपमलोंको भस्मकर जो भगवान हुए, वे कैसे