Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ ११प


उपादान निज गुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय;
भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझै कोय. ४
उपादान बल जहाँ तहाँ, नहि निमित्तको दाव;
एक चक्रसौं रथ चलै, रवि को यहै स्वभाव. प

हवे कषायनी वात करे छे. क्रोध, मान, माया, लोभना परिणाम शुभ के अशुभ भाव ते बधाय कषाय छे. जे भावे तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते भाव पण पुद्गलना परिणाम छे भगवान आत्मा तो अकषायस्वरूप वीतरागमूर्ति प्रभु छे. तेमां ते परिणाम-कषायना परिणाम नथी. जो के कषायना परिणाम जीवनी पर्यायमां छे अने ते निश्चयथी पोताथी थया छे, परकारकथी नहि. पण स्वभावनी द्रष्टिए जोतां, ते कषायना परिणाम स्वभावभूत नथी अने पर्यायमांथी नीकळी जाय छे माटे तेमने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. जो कषायनी उत्पत्ति बे कारणथी कहीए तो निमित्त कारणने भेळवीने उपचारथी कही शकाय. परंतु निमित्तकारण ते खरुं कारण नथी. अहीं तो सिद्धांत शुं छे ते वातनो निर्णय करावे छे. सिद्धांत एम छे के-जे द्रव्यने जे पर्याय जे काळे उत्पन्न थवानी छे ते द्रव्यने ते पर्याय ते काळे पोताना कारणे थाय छे, परथी के निमित्तथी थती नथी. आवी स्पष्ट वात छे.

तेवी रीते ज्ञानना भेदो पण आत्मामां-त्रिकाळी शुद्ध एक ज्ञायकभावमां नथी. आ मति, श्रुत, आदि ज्ञानना भेदो ते जीवने नथी केमके ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे. अहाहा....! गजब वात छे! चैतन्यस्वभावी शुद्ध जीववस्तु त्रिकाळ एकरूप अभेद छे. तेमां ज्ञानमार्गणानो-ज्ञानना भेदोनो अभाव छे. अभेदस्वभावमां भेदनो अभाव छे एम कहेवुं छे. श्री नियमसारनी शुद्धभाव अधिकारनी ४३मी गाथामां कह्युं छे के शुद्धभावमां मार्गणास्थानो नथी अने अहीं जे कह्युं के जीवने मार्गणास्थानो नथी ते बन्ने एक ज वात छे. शुद्धभावमां विकल्प (भेद) जेनुं लक्षण छे तेवां मार्गणास्थानो नथी. शुद्धभाव एटले के द्रष्टिनो विषय जे त्रिकाळ शुद्ध अभेद जीववस्तु छे तेमां ज्ञानना भेदो नथी. पांच ज्ञान अने अज्ञानना त्रण भेदो ते बधाय ज्ञानना भेदो अभेद चैतन्यस्वरूपमां नथी. भेद छे ते खरेखर व्यवहार छे अने तेथी ते त्रिकाळी स्वभावमां-निश्चय स्वरूपमां नथी एम अहीं कहेवुं छे. पर्यायमां जे ज्ञानना भेदो छे ते अशुद्ध निश्चयथी जीवना छे. परंतु शुद्ध निश्चयथी जोईए तो ते ज्ञाननां भेदस्थानो शुद्ध जीववस्तुमां नथी.

प्रश्नः– बंधनुं कारण-निमित्त-रागादि एक होवा छतां प्रकृति भिन्न भिन्न बंधाय छे अने तेनी स्थिति पण भिन्न भिन्न पडे छे तेनुं कारण शुं?

उत्तरः– पोताना उपादानना कारणे एम थाय छे. जेमके दशमा गुणस्थाने जे राग छे तेनाथी छ कर्म बंधाय छे. तेमांथी ज्ञानावरणीय अने दर्शनावरणीयनी अंतःमूहुर्त, वेदनीय (साता)नी १२ मूहुर्त, नाम अने गोत्रनी आठ मूहुर्त तथा अंतराय कर्मनी