Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 265 of 513
PDF/HTML Page 296 of 544

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]
ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
२६५

सकलद्रव्यसाधारणावगाहसंपादनमसर्वगतत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवदाकाशमधिगमयति तथैक- वारमेव गतिपरिणतसमस्तजीवपुद्गलानामालोकाद्गमनहेतुत्वमप्रदेशत्वात्कालपुद्गलयोः, समुद्- घातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रत्वाज्जीवस्य, लोकालोक सीम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य, विरुद्ध- कार्यहेतुत्वादधर्मस्यासंभवद्धर्ममधिगमयति तथैकवारमेव स्थितिपरिणतसमस्तजीवपुद्गला- नामालोकात्स्थानहेतुत्वमप्रदेशत्वात्कालपुद्गलयोः, समुद्घातादन्यत्र लोकासंख्येयभागमात्रत्वा- ज्जीवस्य, लोकालोकसीम्नोऽचलितत्वादाकाशस्य, विरुद्धकार्यहेतुत्वाद्धर्मस्य चासंभवदधर्ममधि- विशुद्धज्ञानदर्शनोपयोगस्वभावं परमात्मद्रव्यं तदेव मनसा ध्येयं वचसा वक्तव्यं कायेन तत्साधक- मनुष्ठानं च कर्तव्यमिति ।।१३३ १३४।। एवं कस्य द्रव्यस्य के विशेषगुणा भवन्तीति कथनरूपेण

त्यां एक ज काळे सर्व द्रव्योने साधारण *अवगाहनुं संपादन (अवगाहहेतुत्वरूप लिंग) आकाशने जणावे छे, कारण के बाकीनां द्रव्यो सर्वगत (सर्वव्यापक) नहि होवाथी तेमने ते संभवतुं नथी.

एवी ज रीते एक ज काळे गतिपरिणत (गतिरूपे परिणमेलां) समस्त जीव पुद्गलोने लोक सुधी गमननुं हेतुपणुं धर्मने जणावे छे, कारण के काळ ने पुद्गल अप्रदेशी होवाथी तेमने ते संभवतुं नथी, जीव समुद्घात सिवाय अन्यत्र लोकना असंख्यमा भागमात्र होवाथी तेने ते संभवतुं नथी, लोक ने अलोकनी सीमा अचलित होवाथी आकाशने ते संभवतुं नथी अने विरुद्ध कार्यनो हेतु होवाथी अधर्मने ते संभवतुं नथी. (काळ ने पुद्गल एकप्रदेशी होवाथी तेओ लोक सुधी गमनमां निमित्त थई शके नहि; जीव समुद्घात सिवायना काळे लोकना असंख्यातमा भागमां ज रहेतो होवाथी ते पण लोक सुधी गमनमां निमित्त थई शके नहि; आकाश गतिमां निमित्त होय तो जीव -पुद्गलोनी गति अलोकमां पण होय अने तेथी लोक -अलोकनी मर्यादा रहे नहि, माटे गतिहेतुत्व आकाशनो गुण पण नथी; अधर्मद्रव्य तो गतिथी विरुद्ध कार्य जे स्थिति तेमां निमित्तभूत छे, माटे ते पण गतिमां निमित्त थई शके नहि. आ रीते गतिहेतुत्वगुण धर्म नामना द्रव्यनुं अस्तित्व जणावे छे.)

एवी ज रीते एक ज काळे स्थितिपरिणत समस्त जीव -पुद्गलोने लोक सुधी स्थितिनुं हेतुपणुं अधर्मने जणावे छे, कारण के काळ ने पुद्गल अप्रदेशी होवाथी तेमने ते संभवतुं नथी, जीव समुद्घात सिवाय अन्यत्र लोकना असंख्यातमा भागमात्र होवाथी तेने ते संभवतुं नथी, लोक ने अलोकनी सीमा अचलित होवाथी आकाशने ते संभवतुं नथी अने विरुद्ध कार्यनो हेतु होवाथी धर्मने ते संभवतुं नथी. प्र. ३४

*अवगाह = लीन थवुं ते; मज्जित थवुं ते; अवकाश पामवो ते. (एक ज काळे सर्व द्रव्योने सामान्य
अवकाशनी प्राप्तिमां आकाशद्रव्य निमित्तभूत छे.)