Pravachansar-Gujarati (Devanagari transliteration). Shastrona arth karavani paddhati.

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प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति

व्यवहारनय स्वद्रव्य -परद्रव्यने वा तेना भावोने वा कारण -कार्यादिकने कोइना कोइमां मेळवी निरुपण करे छे माटे एवा ज श्रद्धानथी मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो. वळी निश्चयनय तेने ज यथावत् निरुपण करे छे तथा कोइने कोइमां मेळवतो नथी तेथी एवा ज श्रद्धानथी सम्यक्त्व थाय छे माटे तेनुं श्रद्धान करवुं.

प्रश्नः—जो एम छे तो जिनमार्गमां बंने नयोनुं ग्रहण करवुं कह्युं छे, तेनुं शुं कारण ?

उत्तरः—जिनमार्गमां कोइ ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो ‘‘सत्यार्थ एम ज छे’’ एम जाणवुं, तथा कोइ ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने ‘‘एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए आ उपचार कर्यो छे’’ एम जाणवुं अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बंने नयोनुं ग्रहण छे. पण बंने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी ‘‘आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे’’ एवा भ्रमरुप प्रवर्तवाथी तो बंने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.

प्रश्नः—जो व्यवहारनय असत्यार्थ छे तो जिनमार्गमां तेनो उपदेश शा माटे आयो ? एक निश्चयनयनुं ज निरुपण करवुं हतुं ?

उत्तरः—एवो ज तर्क श्री समयसारमां कर्यो छे त्यां आ उत्तर आयो छे के— जेम कोइ अनार्य -मले.छने मले.छभाषा विना अर्थ ग्रहण कराववा कोइ समर्थ नथी, तेम व्यवहार विना परमार्थनो उपदेश अशक्य छे तेथी व्यवहारनो उपदेश छे. वळी ए ज सूत्रनी व्याख्यामां एम कह्युं छे के—ए प्रमाणे निश्चयने अंगीकार कराववा माटे व्यवहार वडे उपदेश आपीए छीए पण व्यवहारनय छे ते अंगीकार करवायोग्य नथी.

—श्री मोक्षमार्गप्रकाशक