Pravachansar (Hindi). Gatha: 137.

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धर्मत्वाच्च तदेकदेशसर्वलोकनियमो नास्ति कालजीवपुद्गलानामित्येकद्रव्यापेक्षया एकदेश
अनेकद्रव्यापेक्षया पुनरंजनचूर्णपूर्णसमुद्गकन्यायेन सर्वलोक एवेति ।।१३६।।
अथ प्रदेशवत्त्वाप्रदेशवत्त्वसंभवप्रकारमासूत्रयति
जध ते णभप्पदेसा तधप्पदेसा हवंति सेसाणं
अपदेसो परमाणू तेण पदेसुब्भवो भणिदो ।।१३७।।
यथा ते नभःप्रदेशास्तथा प्रदेशा भवन्ति शेषाणाम्
अप्रदेशः परमाणुस्तेन प्रदेशोद्भवो भणितः ।।१३७।।
स्वकीयस्वकीयस्वरूपे तिष्ठन्ति तथापि व्यवहारेण लोकाकाशे तिष्ठन्तीति अत्र यद्यप्यनन्तजीव-
द्रव्येभ्योऽनन्तगुणपुद्गलास्तिष्ठन्ति तथाप्येकदीपप्रकाशे बहुदीपप्रकाशवद्विशिष्टावगाहशक्तियोगेना-
संख्येयप्रदेशेऽपि लोकेऽवस्थानं न विरुध्यते
।।१३६।। अथ यदेवाकाशस्य परमाणुव्याप्तक्षेत्रं प्रदेश-
लक्षणमुक्तं शेषद्रव्यप्रदेशानां तदेवेति सूचयतिजध ते णभप्पदेसा यथा ते प्रसिद्धाः परमाणु-
व्याप्तक्षेत्रप्रमाणाकाशप्रदेशाः तधप्पदेसा हवंति सेसाणं तेनैवाकाशप्रदेशप्रमाणेन प्रदेशा भवन्ति केषाम्
शुद्धबुद्धैकस्वभावं यत्परमात्मद्रव्यं तत्प्रभृतिशेषद्रव्याणाम् अपदेसो परमाणू अप्रदेशो द्वितीयादि-
प्रदेशरहितो योऽसौ पुद्गलपरमाणुः तेण पदेसुब्भवो भणिदो तेन परमाणुना प्रदेशस्योद्भव
२७०प्रवचनसार[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
नियम नहीं है (और) काल, जीव तथा पुद्गल एक द्रव्यकी अपेक्षासे लोकके
एकदेशमें रहते हैं और अनेक द्रव्योंकी अपेक्षासे अंजनचूर्ण (काजल) से भरी हुई
डिबियाके न्यायानुसार समस्त लोकमें ही हैं
।।१३६।।
अब, यह कहते हैं कि प्रदेशवत्त्व और अप्रदेशवत्त्व किस प्रकारसे संभव है :
अन्वयार्थ :[यथा ] जैसे [ते नभः प्रदेशाः ] वे आकाशप्रदेश हैं, [तथा ]
उसीप्रकार [शेषाणां ] शेष द्रव्योंके [प्रदेशाः भवन्ति ] प्रदेश हैं (अर्थात् जैसेआकाशके प्रदेश
परमाणुरूपी गजसे नापे जाते है उसीप्रकार शेष द्रव्योंके प्रदेश भी इसीप्रकार नापे जाते हैं )
[परमाणुः ] परमाणु [अप्रदेशः ] अप्रदेशी है; [तेन ] उसके द्वारा [प्रदेशोद्भवः भणितः ]
प्रदेशोद्भव कहा है
।।१३७।।
जे रीत आभ -प्रदेश, ते रीत शेष द्रव्य -प्रदेश छे;
अप्रदेश परमाणु वडे उद्भव प्रदेश तणो बने. १३७.