[समयसारनो महिमा]
मोख चलिवेकौ सौंन करमकौ करै बौन,
जाके रस-भौन बुध लौन ज्यौं घुलत है ।
गुनकौ गरंथ निरगुनकौं सुगम पंथ,
जाकौ जस क हत सुरेश अकुलत है ।
याहीके जु पच्छी ते उड़त ज्ञानगगनमें,
याहीके विपच्छी जगजालमें रुलत है ।
हाटक सौ विमल विराटक सौ विसतार,
नाटक सुनत हीये फाटक खुलत है ।।
— पं. बनारसीदासजी
अर्थः — श्री समयसार मोक्ष पर चडवाने सीडी छे (अथवा मोक्ष
तरफ चालवाने शुभ शुकन छे), कर्मनुं ते वमन करे छे अने जेम जळमां
लवण ओगळी जाय छे तेम समयसारना रसमां बुधपुरुषो लीन थई
जाय छे. ते गुणनी गांठ छे (अर्थात् सम्यग्दर्शनादि गुणोनो समूह छे),
मुक्तिनो सुगम पंथ छे अने तेनो (अपार) यश वर्णवतां इन्द्र पण
आकुलित थई जाय छे. समयसाररूपी पांखवाळा (अथवा समयसारना
पक्षवाळा) जीवो ज्ञानगगनमां ऊडे छे अने समयसाररूपी पांख विनाना
(अथवा समयसारथी विपक्ष) जीवो जगजाळमां रझळे छे. समयसारनाटक
(अर्थात् श्री समयसार-परमागम के जेने श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे नाटकनी
उपमा आपी छे ते) शुद्ध सुवर्ण समान निर्मळ छे, विराट (ब्रह्मांड)
समान तेनो विस्तार छे अने तेनुं श्रवण करतां हृदयनां कपाट खूली
जाय छे.
लवण ओगळी जाय छे तेम समयसारना रसमां बुधपुरुषो लीन थई
जाय छे. ते गुणनी गांठ छे (अर्थात् सम्यग्दर्शनादि गुणोनो समूह छे),
मुक्तिनो सुगम पंथ छे अने तेनो (अपार) यश वर्णवतां इन्द्र पण
आकुलित थई जाय छे. समयसाररूपी पांखवाळा (अथवा समयसारना
पक्षवाळा) जीवो ज्ञानगगनमां ऊडे छे अने समयसाररूपी पांख विनाना
(अथवा समयसारथी विपक्ष) जीवो जगजाळमां रझळे छे. समयसारनाटक
(अर्थात् श्री समयसार-परमागम के जेने श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे नाटकनी
उपमा आपी छे ते) शुद्ध सुवर्ण समान निर्मळ छे, विराट (ब्रह्मांड)
समान तेनो विस्तार छे अने तेनुं श्रवण करतां हृदयनां कपाट खूली
जाय छे.
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