Samaysar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 139-140.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

निर्जरा अधिकार
३१९

ततः सर्वानेवास्थायिभावान् मुक्त्वा स्थायिभावभूतं परमार्थरसतया स्वदमानं ज्ञानमेकमेवेदं स्वाद्यम्

(अनुष्टुभ्)
एकमेव हि तत्स्वाद्यं विपदामपदं पदम्
अपदान्येव भासन्ते पदान्यन्यानि यत्पुरः ।।१३९।।
(शार्दूलविक्रीडित)
एकज्ञायकभावनिर्भरमहास्वादं समासादयन्
स्वादं द्वन्द्वमयं विधातुमसहः स्वां वस्तुवृत्तिं विदन्
आत्मात्मानुभवानुभावविवशो भ्रश्यद्विशेषोदयं
सामान्यं कलयन् किलैष सकलं ज्ञानं नयत्येकताम्
।।१४०।।

स्वादमां आवतुं आ ज्ञान एक ज आस्वादवायोग्य छे.

भावार्थःपूर्वे वर्णादिक गुणस्थानपर्यंत भावो कह्या हता ते बधाय, आत्मामां अनियत, अनेक, क्षणिक, व्यभिचारी भावो छे. आत्मा स्थायी छे (सदा विद्यमान छे) अने ते बधा भावो अस्थायी छे (नित्य टकता नथी), तेथी तेओ आत्मानुं स्थानरहेठाणथई शकता नथी अर्थात् तेओ आत्मानुं पद नथी. जे आ स्वसंवेदनरूप ज्ञान छे ते नियत छे, एक छे, नित्य छे, अव्यभिचारी छे. आत्मा स्थायी छे अने आ ज्ञान पण स्थायी भाव छे तेथी ते आत्मानुं पद छे. ते एक ज ज्ञानीओ वडे आस्वाद लेवा योग्य छे.

हवे आ अर्थनो कळशरूप श्लोक कहे छेः

श्लोकार्थः[ तत् एकम् एव हि पदम् स्वाद्यं ] ते एक ज पद आस्वादवायोग्य छे [ विपदाम् अपदं ] के जे विपत्तिओनुं अपद छे (अर्थात् जेमां आपदाओ स्थान पामी शकती नथी) अने [ यत्पुरः ] जेनी आगळ [ अन्यानि पदानि ] अन्य (सर्व) पदो [ अपदानि एव भासन्ते ] अपद ज भासे छे.

भावार्थःएक ज्ञान ज आत्मानुं पद छे. तेमां कोई पण आपदा प्रवेशी शकती नथी अने तेनी आगळ अन्य सर्व पदो अपदस्वरूप भासे छे (कारण के तेओ आकुळतामय छेआपत्तिरूप छे). १३९.

वळी कहे छे के आत्मा ज्ञाननो अनुभव करे छे त्यारे आम करे छेः

श्लोकार्थः[ एक-ज्ञायकभाव-निर्भर-महास्वादं समासादयन् ] एक ज्ञायकभावथी भरेला महास्वादने लेतो, (ए रीते ज्ञानमां ज एकाग्र थतां बीजो स्वाद आवतो नथी माटे) [ द्वन्द्वमयं