Samaysar (Hindi). Sadgurudevshreeke hrudyodgar.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 675

 

background image
सद्गुरुदेवश्रीके
हृदयोद्गार
(स्व हस्ताक्षरमें)
[२१ ]
[ भाषान्तर ]
नमः सिद्धेभ्यः
भगवान कुंदकुंद
आचार्यदेव समयप्राभृतमें कहते हैं
कि, ‘मैं जो यह भाव कहना
चाहता हूँ, वह अन्तरके
आत्मसाक्षीके प्रमाण द्वारा प्रमाण
करना क्योंकि यह अनुभवप्रधान
ग्रंथ है, उसमें मुझे वर्तते स्व-
आत्मवैभव द्वारा कहा जा रहा
है’ ऐसा कहकर गाथा ६ में
आचार्य भगवान कहते हैं कि,
‘आत्मद्रव्य अप्रमत्त नहीं और
प्रमत्त नहीं है अर्थात् उन दो
अवस्थाओंका निषेध करता मैं
एक जाननहार अखंड हूँ
यह
मेरी वर्तमान वर्तती दशासे कह रहा हूँ’ मुनित्वरूप दशा अप्रमत्त व प्रमत्तइन दो भूमिकामें हजारों
बार आती-जाती हैं, उस भूमिकामें वर्तते महा-मुनिका यह कथन है
समयप्राभृत अर्थात् समयसाररूपी उपहार जैसे राजाको मिलनेके लिए उपहार लेकर जाना
होता है उस भांति अपनी परम उत्कृष्ट आत्मदशारूप परमात्मदशा प्रगट करनेके लिए समयसार
जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वरूप आत्मा, उसकी परिणतिरूप उपहार देने पर परमात्मदशा
सिद्धदशा प्रगट होती है
यह शब्दब्रह्मरूप परमागमसे दर्शित एकत्वविभक्त आत्माको प्रमाण करना ‘हाँ’से ही
स्वीकृत करना, कल्पना नहीं करना; इसका बहुमान करनेवाला भी महाभाग्यशाली है
L