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आवेल छे.
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आबाळगोपाळ सर्व जिज्ञासुओमां अध्यात्मतत्त्वना श्रवणनी तेम ज अभ्यासनी
रुचि जाग्रत थई छे.
अनेक वार तेमनां उपर प्रवचनो आपीने, अध्यात्मश्रुतलब्धिवंत पूज्य गुरुदेवे
मुमुक्षु समाजने पायुं छे. तेमना ज पुनित प्रतापे ने कल्याणी प्रेरणाथी, मूळ
गाथाओना भावो समजवामां तेम ज याद राखवामां सरळ पडे ते माटे,
परमागमोनो गुजराती पद्यानुवाद आदरणीय पंडित श्री हिंमतलाल जेठालाल
शाह द्वारा थयो छे.
निमित्तना (हिंदी) दोहा तथा छ ढाळानी सोनगढमां दर महिने समुदायरूपे
अनुक्रमे स्वाध्याय करवानी प्रथा परमपूज्य गुरुदेवश्रीनी तेम ज प्रशममूर्ति पूज्य
बहेनश्री चंपाबेननी उपस्थितिरूप मंगल छायामां प्रवर्तती हती ते हजु पण
पूर्ववत् नियमित प्रवर्तमान छे.
आ छठ्ठी आवृत्ति प्रकाशित थाय छे.
हीरक-जयंती महोत्सव
ता. २०-२-२०१५
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मुनिकुंद संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी.
ग्रंथाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या.
विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोडे परिणति.
विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तुं पंथ मुक्ति तणो.
तुं रीझतां सकलज्ञायकदेव रीझे.
तथापि कुंदसूत्रोनां अंकाये मूल्य ना कदी.
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मुज पुण्यराशि फळ्यो अहो! गुरु क्हान तुं नाविक मळ्यो.
बाह्यांतर विभवो तारा, तारे नाव मुमुक्षुनां,
निमित्तो वहेवारो चिदघन विषे कांई न मळे.
आ दासना जीवनशिल्पी! तने नमुं हुं.
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स्वानुभूतिनी प्राप्ति माटे ज्ञानस्वभावी आत्मानो
आत्मानो निर्णय द्रढ करवामां सहायभूत तत्त्वज्ञाननो
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, नव तत्त्वनुं साचुं स्वरूप, जीव अने
शरीरनी तद्दन भिन्नभिन्न क्रियाओ, पुण्य अने धर्मना
लक्षणभेद, निश्चय-व्यवहार इत्यादि अनेक विषयोना
साचा बोधनो
साथे साथे सर्व तत्त्वज्ञाननो शिरमोर
ज्ञायकस्वभावी शुद्धात्मद्रव्यसामान्य
आलंबन छे, सर्व शुद्धभावोनो नाथ छे
निज शुद्धात्मद्रव्यसामान्यनो आश्रय करवाथी ज
अतीन्द्रिय आनंदमय स्वानुभूति प्राप्त थाय छे.
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अपूर्ण दशा वखते पण परिपूर्ण रहे छे, सदाशुद्ध छे,
कृतकृत्य भगवान छे. जेम रंगित दशा वखते
स्फटिकमणिना विद्यमान निर्मळ स्वभावनुं भान थई
शके छे, तेम विकारी, अधूरी दशा वखते पण जीवना
विद्यमान निर्विकारी, परिपूर्ण स्वभावनुं भान थई शके
छे. आवा शुद्धस्वभावना अनुभव विना मोक्षमार्गनो
प्रारंभ पण थतो नथी, मुनिपणुं पण नरकादिनां
दुःखोना डरथी के बीजा कोई हेतुए पळाय छे. ‘हुं
कृतकृत्य छुं, परिपूर्ण छुं, सहजानंद छुं, मारे कांई
जोईतुं नथी’ एवी परम उपेक्षारूप, सहज
उदासीनतारूप, स्वाभाविक तटस्थतारूप मुनिपणुं
द्रव्यस्वभावना अनुभव विना कदी आवतुं नथी.
आवा शुद्धद्रव्यस्वभावना
आत्मार्थीओए
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