Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
त्रिविधे तजी मिथ्यात्वने, अज्ञानने, अघ-पुण्यने,
योगस्थ योगी मौनव्रतसंपन्न ध्यावे आत्मने. २८.
देखाय मुजने रूप जे ते जाणतुं नहि सर्वथा,
ने जाणनार न द्रश्यमान; हुं बोलुं कोनी साथमां? २९.
आस्रव समस्त निरोधीने क्षय पूर्वकर्म तणो करे,
ज्ञाता ज बस रही जाय छे योगस्थ योगी;जिन कहे. ३०.
योगी सूता व्यवहारमां ते जागता निजकार्यमां;
जे जागता व्यवहारमां ते सुप्त आतमकार्यमां. ३१.
इम जाणी योगी सर्वथा छोडे सकळ व्यवहारने,
परमात्मने ध्यावे यथा उपदिष्ट जिनदेवो वडे. ३२.
तुं पंचसमित, त्रिगुप्त ने संयुक्त पंचमहाव्रते,
रत्नत्रयीसंयुतपणे कर नित्य ध्यानाध्ययनने. ३३.
रत्नत्रयी आराधनारो जीव आराधक कह्यो;
आराधनानुं विधान केवलज्ञानफळदायक अहो! ३४.
छे सिद्ध, आत्मा शुद्ध छे ने सर्वज्ञानीदर्शी छे,
तुं जाण रे!जिनवरकथित आ जीव केवळ ज्ञान छे. ३५.
जे योगी आराधे रतनत्रय प्रगट जिनवरमार्गथी,
ते आत्मने ध्यावे अने पर परिहरे;शंका नथी. ३६.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय
१. अघ-पुण्यने = पापने तथा पुण्यने. २. न द्रश्यमान = देखातो
नथी.
३. पंचसमित = पांच समितिथी युक्त (वर्ततो थको).
४.
त्रिगुप्त = त्रण गुप्ति सहित (वर्ततो थको).
५.रत्नत्रयीसंयुतपणे = रत्नत्रयसंयुक्तपणे.
६.ध्यानाध्ययन = ध्यान तथा अध्ययन; ध्यान तथा शास्त्राभ्यास.