Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 7. ling prAbhrut.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
सम्यक्त्व, सम्यग्ज्ञान, सत्चारित्र, सत्तपचरण जे,
चारेय छे आत्मा महीं; आत्मा शरण मारुं खरे. १०५.
आ जिननिरूपित मोक्षप्राभृत-शास्त्रने सद्भक्तिए
जे पठन-श्रवण करे अने भावे, लहे सुख नित्यने. १०६.
७. लिंगप्राभृत
करीने नमन भगवंत श्री अर्हंतने, श्री सिद्धने,
भाखीश हुं संक्षेपथी मुनिलिंगप्राभृतशास्त्रने. १.
होये धरमथी लिंग, धर्म न लिंगमात्रथी होय छे;
रे! भावधर्म तुं जाण, तारे लिंगथी शुं कार्य छे? २.
जे पापमोहितबुद्धि, जिनवरलिंग धरी, लिंगित्वने;
उपहसित करतो, ते विघाते लिंगीओना लिंगने. ३.
जे लिंग धारी नृत्य, गायन, वाद्यवादनने करे,
ते पापमोहितबुद्धि छे तिर्यंचयोनि, न श्रमण छे. ४.
जे संग्रहे, रक्षे बहुश्रमपूर्व, ध्यावे आर्तने,
ते पापमोहितबुद्धि छे तिर्यंचयोनि, न श्रमण छे. ५.
द्यूत जे रमे, बहुमान-गर्वित वाद-कलह सदा करे,
लिंगीरूपे करतो थको पापी नरकगामी बने. ६.
अष्टप्राभृत-लिंगप्राभृत ]
[ १५७
१. पापमोहितबुद्धि = जेनी बुद्धि पापमोहित छे एवो पुरुष.
२. लिंगित्वने उपहसित करतो = लिंगीपणानो उपहास करे छे; लिंगीभावनी
मश्करी करे छे; मुनिपणानी मजाक करे छे.
३. विघाते = घात करे छे; नष्ट करे छे; हानि पहोंचाडे छे.
४. लिंगीओ = मुनिओ; साधुओ; श्रमणो.
५. बहुश्रमपूर्व = बहु श्रमपूर्वक; घणा प्रयत्नथी.
६.
आर्त = आर्तध्यान.
७. द्यूत = जुगार.