Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जे अवगणीने बंध, खांडे धान्य, खोदे पृथ्वीने,
बहु वृक्ष छेदे जेह, ते तिर्यंचयोनि, न श्रमण छे. १६.
स्त्रीवर्ग पर नित राग करतो, दोष दे छे अन्यने,
द्रगज्ञानथी जे शून्य, ते तिर्यंचयोनि, न श्रमण छे. १७.
दीक्षाविहीन गृहस्थ ने शिष्ये धरे बहु स्नेह जे,
आचार-विनयविहीन, ते तिर्यंचयोनि, न श्रमण छे. १८.
इम वर्तनारो संयतोनी मध्य नित्य रहे भले,
ने होय बहुश्रुत, तोय भावविनष्ट छे, नहि श्रमण छे. १९.
स्त्रीवर्गमां विश्वस्त दे छे ज्ञान-दर्शन-चरण जे,
पार्श्वस्थथी पण हीन भावविनष्ट छे, नहि श्रमण छे. २०.
असतीगृहे भोजन, करे स्तुति नित्य, पोषे पिंड जे,
अज्ञानभावे युक्त भावविनष्ट छे, नहि श्रमण छे. २१.
ए रीत सर्वज्ञे कथित आ लिंगप्राभृत जाणीने,
जे धर्म पाळे कष्ट सह, ते स्थान उत्तमने लहे. २२.
अष्टप्राभृत-लिंगप्राभृत ]
[ १५९
१. बहुश्रुत = बहु शास्त्रोनो जाणनार; विद्वान.
२. भावविनष्ट = भावभ्रष्ट; भावशून्य; शुद्धभावथी (दर्शनज्ञानचारित्रथी)
रहित.
३. विश्वस्त = (१) विश्वासुपणे अर्थात् (स्त्रीवर्गनो) विश्वास करीने;
निर्भयपणे; (२) विश्वसनीयपणे अर्थात् (स्त्रीवर्गमां) विश्वास उपजावीने.
४. असतीगृहे = व्यभिचारिणी स्त्रीना घरे.
५. करे स्तुति नित्य = हंमेशा तेनी प्रशंसा करे छे.
६. पिंड = शरीर.
७. कष्ट सह = कष्ट सहित; प्रयत्नपूर्वक.