श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
१रक्त वस्त्रथी जे रीते रक्त गणे न शरीर,
रक्त देहथी ज्ञानीजन रक्त न माने जीव. ६६.
सक्रिय जग जेने दीसे जड अक्रिय अणभोग,
ते ज लहे छे प्रशमने, अन्ये नहि तद्योग. ६७.
तनकंचुकथी२ जेहनुं ३संवृत ज्ञानशरीर,
ते जाणे नहि आत्मने, भवमां भमे सुचिर. ६८.
अस्थिर अणुनो ४व्यूह छे सम-आकार शरीर,
स्थितिभ्रमथी मूरख जनो ते ज गणे छे जीव. ६९.
हुं गोरो कृश स्थूल ना, ए सौ छे तनभाव,
— एम गणो, धारो सदा आत्मा ज्ञानस्वभाव. ७०.
जो निश्चळ ५धृति चित्तमां, मुक्ति नियमथी होय;
चित्ते नहि निश्चळ धृति, मुक्ति नियमथी नो’य. ७१.
जनसंगे वचसंग ने तेथी मननो ६स्पंद,
तेथी मन बहुविध भमे, योगी तजो जनसंग. ७२.
७अनात्मदर्शी गाम वा वनमां करे निवास;
निश्चळ शुद्धात्मामहीं आत्मदर्शीनो वास. ७३.
देहे आतम-भावना देहान्तरगति-बीज;
आत्मामां निज-भावना देहमुक्तिनुं बीज. ७४.
जीव ज पोताने करे जन्म तथा निर्वाण;
तेथी निज गुरु निश्चये जीव ज, अन्य न जाण. ७५.
१. रक्त = लाल.२. कंचुक = कांचळी.३. संवृत =
ढंकायेलुं.
४. व्यूह = समूह.५. धृति = धीरज; धैर्य; धारणा.
६. स्पन्द = व्यग्रता.७. अनात्मदर्शी = आत्मानो अनुभव जेने थयो
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