Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
निर्मळ, निष्कल, जिनेन्द्र, शिव, सिद्ध, विष्णु, बुद्ध, शांत;
ते परमात्मा जिन कहे, जाणो थई निर्भ्रान्त. ९.
देहादिक जे पर कह्यां, ते माने निजरूप;
ते बहिरातम जिन कहे, भमतो बहु भवकूप. १०.
देहादिक जे पर कह्यां, ते निजरूप न थाय;
एम जाणीने जीव तुं, निजरूपने निज जाण. ११.
निजने जाणे निजरूप, तो पोते शिव थाय;
पररूप माने आत्माने, तो भवभ्रमण न जाय. १२.
विण इच्छा शुचि तप करे, जाणे निजरूप आप;
सत्वर पामे परमपद, तपे न फरी भवताप. १३.
बंध मोक्ष परिणामथी, कर जिनवचन प्रमाण;
नियम खरो ए जाणीने, यथार्थ भावे जाण. १४.
निजरूप जो नथी जाणतो, करे पुण्य बस पुण्य;
भमे तो य संसारमां, शिवसुख कदी न थाय. १५.
निज दर्शन बस श्रेष्ठ छे, अन्य न किंचित् मान;
हे योगी! शिव हेतु ए, निश्चयथी तुं जाण. १६.
गुणस्थानक ने मार्गणा, कहे द्रष्टि व्यवहार;
निश्चय आत्मज्ञान ते, परमेष्ठी पदकार. १७.
गृहकाम करतां छतां, हेयाहेयनुं ज्ञान;
ध्यावे सदा जिनेशपद, शीघ्र लहे निर्वाण. १८.
जिन समरो, जिन चिंतवो, जिन ध्यावो मन शुद्ध;
ते ध्यातां क्षण एकमां, लहो परमपद शुद्ध. १९.
१८२ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय