Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
कर्मो भमावे ऊर्ध्व लोके, अधः ने तिर्यक् विषे,
जे कांई पण शुभ के अशुभ ते सर्वने कर्म ज करे. ३३४.
कर्म ज करे छे, कर्म ए आपे, हरे,सघळुं करे,
तेथी ठरे छे एम के आत्मा अकारक सर्व छे. ३३५.
वळी ‘पुरुषकर्म स्त्रीने अने स्त्रीकर्म इच्छे पुरुषने’
एवी श्रुति आचार्य केरी परंपरा ऊतरेल छे. ३३६.
ए रीत ‘कर्म ज कर्मने इच्छे’कह्युं छे श्रुतमां,
तेथी न को पण जीव अब्रह्मचारी अम उपदेशमां. ३३७.
वळी जे हणे परने, हणाये परथी, तेह प्रकृति छे,
ए अर्थमां परघात नामनुं नामकर्म कथाय छे. ३३८.
ए रीत ‘कर्म ज कर्मने हणतुं’कह्युं छे श्रुतमां,
तेथी न को पण जीव छे हणनार अम उपदेशमां.’’ ३३९.
एम सांख्यनो उपदेश आवो, जे श्रमण प्ररूपण करे,
तेना मते प्रकृति करे छे, जीव अकारक सर्व छे! ३४०.
अथवा तुं माने ‘आतमा मारो करे निज आत्मने’,
तो एवुं तुज मंतव्य पण मिथ्या स्वभाव ज तुज खरे. ३४१.
जीव नित्य तेम वळी असंख्यप्रदेशी दर्शित समयमां,
तेनाथी तेने हीन तेम अधिक करवो शक्य ना. ३४२.
विस्तारथीय जीवरूप जीवनुं लोकमात्र ज छे खरे,
शुं तेथी ते हीन-अधिक बनतो? केम करतो द्रव्यने? ३४३.
माने तुं‘ज्ञायक भाव तो ज्ञानस्वभावे स्थित रहे’,
तो एम पण आत्मा स्वयं निज आतमाने नहि करे. ३४४.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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