Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
सुर-असुर-नरपति पीडित वर्ते सहज इन्द्रियो वडे,
नव सही शके ते दुःख तेथी रम्य विषयोमां रमे. ६३.
विषयो विषे रति जेमने, दुख छे स्वभाविक तेमने;
जो ते न होय स्वभाव तो व्यापार नहि विषयो विषे. ६४.
इन्द्रियसमाश्रित इष्ट विषयो पामीने, निज भावथी
जीव प्रणमतो स्वयमेव सुखरूप थाय, देह थतो नथी. ६५.
एकांतथी स्वर्गेय देह करे नहि सुख देहीने,
पण विषयवश स्वयमेव आत्मा सुख वा दुख थाय छे. ६६.
जो द्रष्टि प्राणीनी तिमिरहर, तो कार्य छे नहि दीपथी;
ज्यां जीव स्वयं सुख परिणमे, विषयो करे छे शुं तहीं? ६७.
ज्यम आभमां स्वयमेव भास्कर उष्ण, देव, प्रकाश छे,
स्वयमेव लोके सिद्ध पण त्यम ज्ञान, सुख ने देव छे. ६८.
गुरु-देव-यतिपूजा विषे, वळी दान ने सुशीलो विषे,
जीव रक्त उपवासादिके, शुभ-उपयोगस्वरूप छे. ६९.
शुभयुक्त आत्मा देव वा तिर्यंच वा मानव बने;
ते पर्यये तावत्समय इन्द्रियसुख विधविध लहे. ७०.
सुरनेय सौख्य स्वभावसिद्ध नसिद्ध छे आगम विषे;
ते देहवेदनथी पीडित रमणीय विषयोमां रमे. ७१.
तिर्यंच-नारक-सुर-नरो जो देहगत दुख अनुभवे,
तो जीवनो उपयोग ए शुभ ने अशुभ कई रीत छे? ७२.
चक्री अने देवेन्द्र शुभ-उपयोगमूलक भोगथी
पुष्टि करे देहादिनी, सुखी सम दीसे अभिरत रही. ७३.
श्री प्रवचनसार-पद्यानुवाद ]
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