Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration). INTRODUCTION; SHREE JINENDRA BHAJANMALA; AAVRUTTI; PUJYA GURUDEVSHREE KANJISWAMI; PRAKASHKEEY NIVEDAN; ANUKRAMNIKA.

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श्री सीमंधरदेवाय नमः
श्री
जिनेन्द्र भजनमाळा
-ः प्रकाशकः-
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ-३६४ २५०

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षष्टमावृत्तिवि. सं. २०६५प्रतः २०००
मुद्रक
कहान मुद्रणालय
सोनगढ- (02846) 244081
किंमत : रुा. १०=००
श्री जिनेन्द्र भजनमाळा (गुजराती)ना
स्थायी प्रकाशन पुरस्कर्ता
वढवाणनिवासी स्व. प्रेमचंदभाइ उजमशीभाइ शाहनी स्मृतिमां
ह. मंजुलाबेन प्रेमचंदभाइ शाह
आ शास्त्रनी पडतर किंमत रूा. २४=२० थाय छे.
अनेक मुमुक्षुओनी आर्थिक सहायथी आ आवृत्तिनी किंमत
रूा.२०=०० थाय छे. तेमांथी ५०
% श्री कुंदकुंद-कहान
पारमार्थिक ट्रस्ट हस्ते स्व. श्री शांतिलाल रतिलाल शाह
परिवार तरफथी किंमत घटाडवामां आवता आ शास्त्रनी
किंमत रूा.१०=०० राखवामां आवी छे.


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प्रकाशकीय निवेदन
परमोपकारी पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अपूर्व
प्रभावनायोगे अद्भूत कल्याणकारी कार्यो आ विषमकाळमां थयेलां
देखाय छे. तेओश्रीना प्रभावना उदये सुवर्णपुरी (सोनगढ)मां
ज नहीं पण श्वेताम्बरबहुल एवा सौराष्ट्रना गामेगाम तथा
समग्र भारत तेमज विदेशोमां नूतन जिनमंदिरोनुं निर्माण थयुं.
आवा अनेक प्रसंगोए जिनेन्द्र भगवंतोनी भक्तिनो महासागर
उमटी जतो. तेमां प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबेननुं पण
कल्याणकारी मार्गदर्शन भकतोने मळी रहेतुं. आवा मंगल प्रतिष्ठा
महोत्सवो प्रसंगे भक्ति काव्योनां नवीन पुस्तको बहार पाडवामां
आवतां हतां. सौराष्ट्रना प्रमुख शहेर राजकोटमां जिनेन्द्र
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव निमित्ते सौ प्रथमवार आ ‘जिनेन्द्र
भजनमाळा’ पुस्तक प्रकाशित करवामां आव्युं हतुं. जेनी सर्व
नकलो खपी जवाथी तेनी आ छठ्ठी आवृत्ति पुनः प्रकाशित
करवामां आवे छे. आशा छे के मुमुक्षु समाज आनाथी लाभान्वित
थशे.
वैशाख सुद-२
पूज्य गुरुदेवश्रीनो १२०मो
जन्मजयंती महोत्सव
ता. २६-४-२००९
साहित्यप्रकाशनसमिति
श्री दि० जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ-






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श्री जिनेन्द्र भजनमाळा
G
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं।।
सुसीमाधृता येन सीमंधरेण, भवारण्यभीम भ्रमीया सुकृत्यैः।
प्रवंद्य सदा तीर्थकृत् देवदेव प्रदेयात् स मेऽनंत कल्याणबीजं.।।
G
अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धीश्वराः
आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः
श्री सिद्धान्तसुपाठकाः मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः
पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम्.।।

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सुप्रभातस्तोत्र
(शार्दूलविक्रीडित)
यत्स्वर्गावतरोत्सवे यदभवज्जन्माभिषेकोत्सवे
यद्दीक्षाग्रहणोत्सवे यदखिलज्ञानप्रकाशोत्सवे,
यन्निर्वाणगमोत्सवे जिनपतेः पूजाद्भुतं तद्रवैः
संगीतस्तुतिमंगलैः प्रसरतां मे सुप्रभातोत्सव.
(वसंततिलका)
श्रीमन्नतामरकिरीटमणिप्रभाभिः
आलीढपादयुग दुर्धरकर्मदूर,
श्रीनाभिनंदन जिनाजित शंभवाख्य
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं.२
छत्रत्रयं प्रचलचामरवीज्यमान
देवाभिनंदन मुने सुमते जिनेन्द्र,
पद्मप्रभारुणमणिद्युतिभासुरांग
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ३
अर्हन् सुपार्श्व कदलीदलवर्ण गात्र
प्रा ले य ता रगिरिमौक्तिकवर्णगौर,
चंद्रप्रभ स्फटिक पांडुर पुष्पदंत
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ४

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संतप्तकांचनरुचे जिनशीतलाख्य
श्रेयान्विनष्ट दुरिताष्ट कलंकपंक,
बंधूकबंधुर रुचे जिनवासुपूज्य
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ५
उद्दंडदर्पकरिपो विमलामलांग
स्थेमन्ननंतजिदनंत सुखांबुराशे,
दुष्कर्मकल्मषविवर्जित धर्मनाथ
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ६
देवामरीकुसुमसन्निभ शांतिनाथ
कुंथोदयागुणविभूषणभूषितांग,
देवाधिदेव भगवन्नरतीर्थनाथ
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ७
यन्मोहमल्लमदभंजन मल्लिनाथ
क्षेमंकरावितथ शासन सुव्रताख्य,
यत्संपदा प्रशमितो नमिनामधेय
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ८
तापिच्छगुच्छरुचिरोज्ज्वल नेमिनाथ
घोरोपसर्गविजयिन् जिन पार्श्वनाथ
स्याद्वादसूक्तिमणिदर्पण वर्द्धमान
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं. ९

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प्रालेयनीलहरितारुणपीतभासं
यन्मूर्तिमव्यय सुखावसथं मुनींद्राः
ध्यायंति सप्ततिशतं जिनवल्लभानां
त्वद्ध्यानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं.१०
(अनुष्टुप)
सुप्रभातं सुनक्षत्रं मांगल्यं परिकीर्तितं,
चतुर्विंशति तीर्थानां सुप्रभातं दिनेदिने. ११
सुप्रभातं सुनक्षत्रं श्रेयः प्रत्यभिनंदितं,
देवता ॠषयः सिद्धाः सुप्रभातं दिने दिने. १२
सुप्रभातं तवैकस्य वृषभस्य महात्मनः,
येन प्रवर्तितं तीर्थं भव्यसत्त्व सुखावहं. १३
सुप्रभातं जिनेन्द्राणां ज्ञानोन्मीलितचक्षुषां,
अज्ञानतिमिरांधानां नित्यमस्तमितोरविः १४
सुप्रभातं जिनेंद्रस्य वीरः कमललोचनः,
येन कर्माटवी दग्धा शुक्लध्यानोग्रवह्निना. १५
सुप्रभातं सुनक्षत्रं सुकल्याणं सुमंगलं,
त्रैलोक्यहितकर्तृणां जिनानामेव शासनं. १६
इति सुप्रभात मंगलं.

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श्री चोवीस तीर्थंकर स्तुति
[स्वयंभू स्तोत्र भाषा]
(चोपाई)
राज विषे जुगलनि सुख कियो,
राज त्याग भुवि शिवपद लियो;
स्वयंबोध स्वयंभू भगवान,
वंदूं आदिनाथ गुणखान....
इन्द्र क्षीर सागर जल लाय,
मेरु न्हवाये गाय बजाय;
मदन-विनाशक सुख करतार,
वंदूं अजित अजित पद कार...
शुक्ल ध्यान करि करम विनाशी,
घाति अघाति सकल दुःखराशि;
लह्यो मुक्तिपद सुख अधिकार,
वंदूं संभव भवदुःख टार...
माता पच्छिम रयनमंझार,
सुपने सोलह देखे सार,
भूप पूछी फल सुनि हरषाय,
वंदूं अभिनंदन मनलाय....

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सब कुवाद वादी सरदार,
जीते स्याद् वाद धुनि सार;
जैनधरम परकाशक स्वाम,
सुमतिदेवपद करहुं प्रणाम...५
गर्भ अगाउ धनपति आय,
करी नगर शोभा अधिकाय,
वरसे रतन पंच दश मास,
नमूं पदम प्रभु सुखकी राश...
इन्द्र फनिंद नरिंद त्रिकाल,
वाणी सुनि सुनि होई खुशाल;
द्वादश सभा ज्ञानदातार,
नमूं सु पारसनाथ निहार...
सुगुन छियालीस हैं तुममांही,
दोष अठारह कोउ नांही;
मोह महातम नाशक दीप,
नमूं चंद्रप्रभ राख समीप...
द्वादशविध तप करम विनाश,
तेरह भेद चरित परकाश;
निज अनिच्छ भवि इच्छकदान,
वंदूं पुष्पदंत मन आन...

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भवि सुखदाय सुरगतें आय,
दशविध धरम कह्यो जिनराय;
आप समान सबनि सुखदेह,
वंदूं शीतल धर्मसनेह... १०
समता सुधा कोप विष नाश,
द्वादशांग वानी परकाश;
चार संघ आनंद दातार,
नमूं श्रेयांस जिनेश्वर सार... ११
रतनत्रय चिर मुकुट विशाल,
शोभे कंठ सुगुन मनिमाल;
मुक्तिनार भरता भगवान,
वासुपूज्य वंदूं धर ध्यान... १२
परम समाधि स्वरूप जिनेश,
ज्ञानी ध्यानी हित उपदेश;
कर्म नाशि शिवसुख विलसंत,
वंदूं विमलनाथ भगवंत... १३
अंतर बाहिर परिगह डारी,
परम दिगंबर व्रतको धारी;
सर्व जीव हित राह दिखाय,
नमूं अनंत वचनमन लाय... १४

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सात तत्त्व पंचासतिकाय,
अरथ नवों छ दरव बहु भाय;
लोक अलोक सकल परकाश,
वंदूं धर्मनाथ अविनाश... १५
पंचम चक्रवर्ती निधिभोग,
कामदेव द्वादशम मनोग,
शांतिकरन सोलम जिनराय,
शांतिनाथ वंदूं हरषाय... १६
बहु थुति करें हरष नहि होय,
निंदे दोष गहै नहि कोय;
शीलवान परब्रह्म स्वरूप,
वंदूं कुंथुनाथ शिवभूप... १७
द्वादश गण पूजें सुखदाय,
थुति वंदना करें अधिकाय;
जाकी निज थुति कबहुं न होय,
वंदूं अर-जिनवर पद दोय... १८
पर भव रतनत्रय अनुराग,
इह भव व्याह समय वैराग;
बाल ब्रह्म पूरन व्रत धार,
वंदूं मल्लिनाथ जिन सार... १९

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विन उपदेश स्वयं वैराग,
थुति लौकांत करे पग लाग;
‘नमः सिद्ध’ कही सब व्रत लेहिं,
वंदूं मुनिसुव्रत व्रत देहिं... २०
श्रावक विद्यावंत निहार,
भगतिभाव सों दियो अहार;
वरसी रतनराशि ततकाल,
वंदूं नमिप्रभु दीन दयाळ... २१
सब जीवन की बंदी छोड,
राग रोष द्वै बंधन तोर;
रजमति तजि शिवतिय सों मिले,
नेमिनाथ वंदूं सुख निले... २२
दैत्य कियो उपसर्ग अपार,
ध्यान देखि आयो फनिधार;
गयो कमठ शठ मुख कर श्याम,
नमुं मेरु सम पारस स्वाम... २३
भव सागर तें जीव अपार;
धरम पोत में धरे निहार;
डूबत काढे दया विचार,
वर्द्धमान वंदूं बहु वार... २४

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(दोहा)
चोवीसों पद कमल जुग, वंदूं मन वच काय;
‘द्यानत’ पढे सुने सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय.
संकट हरन विनति
(दोहा)
जासु धर्म परभावसों, संकट कटत अनंत;
मंगल मूरति देव सो जयवंतो अरहंत.
हे करुणानिधि सुजन को, कष्टविषे लखि लेत;
तजि विलंब दुःख नष्ट किय अब विलंब किह हेत.
(छप्पा)
तब विलंब नहीं कियो दियो नमि को रजता बल,
तब विलंब नहीं कियो मेघ वाहन लंका थल;
तब विलंब नहीं कियो शेठ सुत दारिद भंजे,
तब विलंब नहीं कियो नाग जुग सुरपद रंजे.
इम चूरि भूरि दुःख भक्त के सुख पूरे शिवतिय वरन;
प्रभु मोहि दुःख नाशन विषे, अब विलंब कारन कवन.
तब विलंब नहीं कियो सीता पावक जल कीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो चंदना शृंखल छीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो चीर द्रौपदि को बाढ्यो,
तब विलंब नहीं कियो सुलोचन गंगा काढ्यो....इम चूरि०