स्तवनमाळा ][ ५७
श्री सीमंधार जिन – स्तवन
विदेहे वस्या भगवान, वंदन करूं भावथी हुं;
श्री सीमंधर भगवान, वंदन करूं भावथी हुं;
वीस विहरमान भगवान, वंदन करूं भावथी हुं;
प्रभु समोसरणे बिराजी रह्या,
प्रभु पूर्ण आनंद म्हाली रह्या;
अहो मुनिवृंदोना नाथ, वंदन करूं भावथी हुं;
ध्येय ध्यान ध्याता एकरूप बन्या,
प्रभु चिद्दबिंबे मशगूल बन्या;
ओंकारे आनंद उभराय, वंदन करूं भावथी हुं;
पूर्णज्ञान अचिंत्य रचना प्रभु,
दीसे लोक अलोक एक अणु समुं,
(अहो) तुं तो वीतरागी भगवान — वंदन.
अनंतगुण तरंगमांही डोली रह्या,
सुरेश चक्रेश चरणो पूजी रह्या;
एवा त्रण भुवनना नाथ – वंदन.
प्रभु सादि अनंत सुख आतमभोगी,
प्रभु गगनविहारी जिनदेव योगी;
प्रभुकृपा नजरथी निहार, वंदन करूं भावथी हुं;
प्रभु सुर असुर तारी सेवा करे,
त्रिलोकीनाथ देखी जेनुं हैयुं झूले;
प्रभु चारे तीरथ शणगार – वंदन.
तुज भक्ति तरंगे सेवक इच्छे,
दर्शन देखे तो अमृतरस पीवे;