Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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दूर रहो रहित दोष स्तुति तमारी;
तारी कथा पण अहो जन-पापहारी;
दूर रहे रवि तथापि तस प्रभाए,
खीले सरोवर विषे कमळो घणांये.
आश्चर्य ना भुवनभूषण! भूतनाथ!
रूपे गुणे तुज स्तुति करनार साथ;
ते तुल्य थाय तुजनी, धनीको शुं पोते,
पैसे समान करता नथी आश्रितोने? १०
जो दर्शनीय प्रभु एक टसेथी देखे,
संतोषथी नहि बीजे जन नेत्र पेखे;
पी चंद्रकान्त पय क्षीरसमुद्र केरुं,
पीशे पछी जळनिधि जळ कोण खारुं? ११
जे शांतराग रुचिनां परमाणु मात्र,
ते तेटलां ज भुवि आप थयेल गात्र;
ए हेतुथी त्रिभुवने शणगार रूप,
तारा समान नहि अन्य तणुं स्वरूप. १२
त्रैलोक सर्व उपमाने जे जीतनारुं,
ने नेत्र देव-नर-उरग हारी तारुं;
क्यां मुख क्यां वळी कलंकित चंद्रबिंब,
जे दिवसे पीळचटुं पडी जाय खूब? १३
स्तवन मंजरी ][ १३