Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तुं आद्य अव्यय अचिंत्य असंख्य विभु,
छे ब्रह्म ईश्वर अनंत अनंगकेतु;
योगीश्वर विदितयोग अनेक एक,
के’छे तने विमळ ज्ञानस्वरूप संत. २४
छो बुद्धि बोध थकी हे सुरपूज्य बुद्ध,
छो लोकने सुखद शंकर तेथी शुद्ध;
छो मोक्षमार्गविधि धारणथी ज धाता,
छो स्पष्ट आप पुरुषोत्तम स्वामी त्राता. २५
त्रैलोक दुःखहर नाथ! तने नमोस्तु,
तुं भूतळे अमलभूषणने नमोस्तु;
त्रैलोकना ज परमेश्वरने नमोस्तु,
हे जिन शोषक भवाब्धि! तने नमोस्तु. २६
आश्चर्य शुं गुण ज सर्व कदी मुनीश,
तारो ज आश्रय करी वसता हंमेश;
दोषो धरी विविध आश्रय ऊपजेला,
गर्वादिके न तमने स्वपने दीठेला. २७
ऊंचा अशोकतरु आश्रिय, कीर्ण ऊंच,
अत्यंत निर्मळ दीसे प्रभु आप रूप;
ते जेम मेघ समीपे रही सूर्यबिंब,
शोभे प्रसारी किरणो हणीने तिमिर. २८
१६ ][ श्री जिनेन्द्र