जेनी पासे शिवप्रमुख सौ छे प्रभावे विहीन,
तुंथी तेह रतिपति क्षणे सर्वथा कीध क्षीण;
अग्निओ जे जल थकी अहो! निश्चये बुझवाय,
रे! शुं तेही दुःसह वडवावह्निथी ना पिवाय? ११
स्वामी! तुनें बहु ज गुरुतावंतने आश्रनारा,
सत्त्वो सर्वे हृदयमहिं तने धारीने क्या प्रकारा;
जन्माब्धिने अति लघुपणे रे! तरे शीघ्र साव,
वा अत्रे तो महद्जननो छे अचिंत्य प्रभाव. १२
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जो विभु हे! प्रथमथी ज तें क्रोध कीधो निरस्त,
तो कीधा तें कई ज रीतथी कर्मचोरो विनष्ट?
लीलां वृक्षो युत वनगणोने अहो! लोकमांही,
ना बाळे शुं शिशिर पण रे! हिमराशिय आंही? १३
योगीओ तो जिनपति! सदा तुं परमात्मारूपीने,
रे! शोधे छे हृदयकजना कोशदेशे फरीने;
शुं कर्णिका विण अपर रे! संभवे छे अनेरुं,
स्थान ह्यां तो पुनित अमला अब्जना बीज केरुं? १४
पामे भव्यो क्षणमहिं प्रभु हे! परमात्मादशाने,
जिनेशा हे! शरीर तजीने आपश्रीना ज ध्याने;
तीव्राग्निथी तजी दई अहो! भाव पाषाण केरो,
पामे लोके झट कनकता जे रीते धातुभेदो. १५
स्तवन मंजरी ][ २३