परम नाथजी! दुःख कापजो,
अचल एहवुं शर्म आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं. ४
परम देवरे! व्याधि कापजो,
अचल एहवी शांति आपजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं. ५
अचल देवरे! शत्रु वारजो,
शरण ताहरुं सर्वदा हजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं. ६
विपत्ति दासनी सर्व कापजो,
चरण पद्मनी सेवना हजो;
परम भावथी ध्यान हुं धरुं,
जिनपति! तने वंदना करुं. ७
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श्री जिनवाणी – स्तवन
(सहु भावे नमो गुरुराजने रे – ए देशी)
धन्य दिव्य वाणी ॐकारने रे,
जेणे प्रगट कर्यो आत्मदेव;
जिनवाणी जयवंत त्रणलोकमां रे. १
७० ][ श्री जिनेन्द्र