भगवानश्रीकुंदकुंदकहानजैनशास्त्रमाळाना १८१मा पुष्परूपे गुजराती भाषामां स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षानुं आ बीजुं संस्करण श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, सोनगढ द्वारा प्रकाशित करतां अति प्रसन्नता अनुभवीए छीए. गुजराती भाषानुवाद युक्त आ ग्रंथनुं प्रथम संस्करण ‘श्रीमद् राजचंद्र ज्ञानप्रचारक ट्रस्ट’ — अमदावाद तरफथी वि. सं. २००७मां प्रकाशित करवामां आव्युं हतुं. तेना आधारे आ द्वितीय संस्करण मुद्रित करवामां आव्युं छे.
बाळब्रह्मचारी अध्यात्मयोगी निर्ग्रंथ दिगंबर मुनिवर श्री ‘स्वामी कुमार’ अपरनाम ‘स्वामी कार्तिकेय’ प्रणित आ ‘अनुप्रेक्षाग्रंथ’ सम्यग्ज्ञान- वैराग्यनो अनुपम बोध आपनार उच्च कोटिनुं एक महान शास्त्र छे. प्राकृतभाषामां रचायेल आ पवित्र शास्त्रमां, वैराग्यजननी अध्रुवादि बार भावनाना अति भाववाही तेमज रहस्यगंभीर वर्णननी साथे साथे, प्रकरणना प्रसंग अनुसार, वीतराग जैनदर्शननुं प्रयोजनभूत तत्त्वज्ञान पण अति सुंदर रीते निरूपवामां आव्युं छे. ‘अनुप्रेक्षा’ना आ भाववाही महान ग्रंथ उपर, अध्यात्मरसानुभवी बाळब्रह्मचारी सन्मार्गप्रकाशक परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीए अध्यात्मरसभरपूर सुंदर प्रवचनो आप्यां छे. पूज्य गुरुदेवे ‘स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा’नां प्रवचनोमां जे अर्थगंभीर तेम ज ज्ञान-वैराग्यप्रेरक अद्भुत रहस्यो खोल्यां छे तेमनाथी अनेक मुमुक्षुहृदयो प्रभावित थयां छे; अने तेथी केटलाक मुमुक्षु महानुभावोनी, घणा वखतथी अप्राप्य एवा आ महान ग्रंथनुं नवुं संस्करण छपाववानी मागणी हती.
अध्यात्मयुगप्रवर्तक परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी पवित्र साधनाभूमि अध्यात्मतीर्थधाम सुवर्णपुरी (सोनगढ) मां स्वानुभवविभूषित प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबेननी, अध्यात्म साधना तेम ज देव-गुरु- भक्तिभीनी मंगळ छायातळे पूर्ववत् जे अनेकविध धार्मिक गतिविधि चाले छे तेना एक अंगरूप सत्साहित्य प्रकाशनविभाग द्वारा जे आर्षप्रणीत मूळ