Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८८ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
रागद्वेषादयो दोषा नश्यंति निर्ममत्वतः
शाम्यार्थी सततं तस्मान्निर्ममत्वं विचिंतयेत् ।।२०।।
निर्ममताथी सम्यग्द्रष्टि ने ज्ञानी संयमी जीव थाय;
थाय तपस्वी पण ते तेथी, निर्ममता चिंतव सुखदाय,
सर्व राग-द्वेषादि दोषो, निर्ममताथी थाय विनाश;
शाम्यार्थीए तेथी सतत आ निर्ममता चिंतववी खास. १९-२०.
अर्थःनिर्ममत्व वडे, जीव सम्यग्द्रष्टि, यथार्थ ज्ञानी, संयमी
अने तपस्वी थाय छे, माटे निर्ममत्वने ज चिंतववुं. १९.
निर्ममत्वथी राग-द्वेष आदि दोषोनो नाश थई जाय छे, माटे
साम्य इच्छनाराओए निर्ममत्वनुं सतत चिंतवन करवुं. २०.
विचार्यत्थमहंकारममकारौ विमुंचति
यो मुनिः शुद्धचिद्रूपध्यानं स लभते त्वरा ।।२१।।
(त्रोटक)
मुनि एम विचारी अहंकृतिने,
ममकार अनादि अजागृतिने;
तजी आत्मिक जागृति शीघा्र धारे,
निज निर्मल चिद्रूप धयान वरे. २१.
अर्थ :जे मुनि आ प्रमाणे विचारीने अहंकार अने ममकारनो
त्याग करे छे, ते त्वराथी शुद्ध चैतन्यस्वरूपनुं ध्यान पामे छे. २१.