नवनत
जब जान्यो निज रूपको, तब जान्यो सब लोक;
नहि जान्यो निजरूपको, सब जान्यो सो फोक.
व्यवहासे देव जिन, निहचेसे है आप;
एहि बचन सें समजे ले, जिनाप्रवचनकी छाप.
श्रीमद्द राजचन्द्र
उत्तर:–ना. परनी सहायथी स्वरूपनी प्राप्ति थती नथी. जो आत्मा पराधीन थाय तो आकुळता सहित थई
जाय, अने जे जगाए आकुळता छे, त्यां स्वरूपनी प्राप्ति नथी. ए कारणे परनी सहायता विना ज आत्मा निराकुळ
थाय छे एवी दशा पोतानी ज सहायताथी पोते पामे छे. जे पोतानी अनंत शक्तिरूप संपदाथी परिपूर्ण छे ते बीजानी
अपेक्षा केम राखे? कदी नहि.
४:–एथी सिद्ध थयुं के, ‘शारीरिक क्रियाथी’ के ‘करोतिक्रिया’ थी मोक्ष थतो नथी; अने तेथी ‘ज्ञप्ति क्रिया’ मां
क्रियानो अर्थ शुद्ध स्वरूपमां रमणतारूप स्थिरता छे. बीजो कोई अर्थ नथी.
प–तेथी मोक्षनी क्रियामां क्रिया : शब्दना अर्थ नीचे प्रमाणे थया–(१) ज्ञप्ति क्रिया (२) ज्ञान क्रिया (३)
ज्ञानवश क्रिया, (४) शुद्ध चैतन्य क्रिया, (प) शुध्ध चारित्र (६) अनुभवरूप क्रिया, (७) वीतराग चारित्र, (८)
निश्चय चारित्र, (९) स्वभाव, (१०) धर्म, (११) सभमाव, (१२) साम्यभाव, (१३) समपरिणाम, (१४)
आत्माना स्थिररूप सुखमय निर्विकार परिणाम, (१प) शुद्ध चित्स्वरूपनुं चरण. कोई पण ज्ञानी आ क्रिया निषेधता
नथी, पण आचरे छे. अने आत्मानी बधी विकारी क्रियाने अनंत ज्ञानीओ निंदे छे केमके ते कषायमयी छे, अकषायी
भावनी नथी; अने तेथी पर छे. शरीरनी क्रिया आत्माने सहायक नथी ते तो उपर कहेवायुं छे.
श्री सनातन जैन ब्रह्मचर्याश्रम
(१) आ आश्रममां जैन शास्त्रोनो अभ्यास कराववामां आवे छे. (२) विद्यार्थीओनुं रहेवानुं तथा जमवानुं
खर्च आ आश्रम तरफथी आपवामां आवे छे. (३) विद्यार्थीनी उंमर १४ वर्ष अगर तेथी उपरनी होवी जोईए
(१४) अभ्यासक्रम त्रण वर्ष सुधीनो छे. (प) जेने दाखल थवा ईच्छा होय तेणे नीचेने ठेकाणे पत्र व्यवहार करी
छापेलुं फोर्म मंगावी लेवुं.
श्री प्रमुख जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट. सोनगढ (काठियावाड)
ATMADHARMA Regd No. B, 4787
समाचार
पूज्य सद्गुरु देव श्री कानजी स्वामी हाल राजकोट सदरमां आनंदभवनमां बिराजे छे.
हंमेशां सवारे श्री समयसारनो बंध अधिकार वंचाय छे. बपोरे कर्ताकर्मनो अधिकार वंचाय छे.
श्री आत्मसिद्धि परना प्रवचनोनी पहेली आवृत्ति खलास थई जवाथी बीजी आवृत्ति प्रेसमां आपवामां आवी
छे. तेनी नकलो १००० छापवामां आवे छे.
सवारे तथा बपोरे जे व्याख्यानो थाय छे तेनी टूंक नोंध लेवामां आवे छे. अने तेने छपाववानो प्रबंध करवामां आवेल छे.
पू. महाराजश्रीनी पासे चालता स्वाध्यायनो क्रम नीचे प्रमाणे छे.
सवारमां ७–० थी ७–३० ज्ञानचर्चा
,, ९–१५ थी १०–१५ महाराज साहेबनुं व्याख्यान.
,, १०–३० थी ११–१५ श्री. सर्वार्थ सिद्धिनुं वांचन.
बपोरे २–३० थी ३–१५ ,, ,, ,,
,, ३–३० थी ४–३० महाराज साहेबनुं व्याख्यान.
,, ४–४५ थी ५–४५ श्री. अष्टपाहुडनुं वांचन
,, ८–१५ थी ९–१५ तत्त्वने लगती प्रश्नोत्तरी
आ उपरांत हंमेशांं सांजना ७–१५ थी ८–१५
सर्व सामान्य प्रतिक्रमण थाय छे.
श्री सनातन जैन ब्रह्मचर्याश्रममां हाल १०
विद्यार्थीओ शास्त्रोनो अभ्यास करी रह्या छे. तेमने
महाराज साहेबना व्याख्यानो उपरांत सवार तथा
बपोरे अभ्यास कराववामां आवे छे.
विनति
जैन दर्शननुं यथार्थ स्वरूप समजावतुं आ मासिक
बहोळो फेलावो पामे एवी उमेद छे. एथी आप सौ मुमुक्षु
भाई बहेनो आपना सहवासमां आवता स्नेही स्वजनोने
आ मासिकना ग्राहक थवा माटे भलामण करशो.
आ मासिकनुं वार्षिक लवाजम मात्र अढी
रूपिया होई सामान्य स्थितिना भाई बहेनो पण
एना ग्राहक बनी शकशे. व्यवस्थापक.
मुद्रक:– चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट
साहित्य मुद्रणालय दासकुंज, मोटा आंकडिया.
काठियावाड.
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्याय ट्रस्ट सोनगढ,
वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, दासकुंज मोटा
आंकडिया. काठियावाड.