वार्षिक लवाजम छुटक नकल
रूपिया २–८–० चार आना
शिष्ट साहित्य भंडार * मोटा आंकडिया काठियावाड
हे सवोत्कृष्ट सुखना हेतुभूत सम्यग्दर्शन!
तने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार हो.
आ अनादि संसारमां अनंत अनंत जीवो
तारा आश्रय विना अनंत–अनंत दुःखने
अनुभवे छे.
तारा परमानुग्रहथी स्व–स्वरूपमां रुचि थई;
परम वीतराग स्वभाव प्रत्ये परम निश्चय आव्यो.
कृतकृत्य थवानो मार्ग ग्रहण थयो. हे जिन वीतराग!
तमने अत्यंत भक्तिथी नमस्कार करुं छुं. तमे आ
पामर प्रत्ये अनंत–अनंत उपकार कर्यो छे.
हे कुन्दकुन्दादि आचार्यो! तमारा वचनो पण
स्वरूपानुसंधानने विषे आ पामरने परम
उपकारभूत थयां छे. ते माटे तमने अतिशय
भक्तिथी नमस्कार करुं छुं.
सम्यग्दर्शननी प्राप्ति विना जन्मादि दुःखनी
आत्यंतिक निवृत्ति बनवा योग्य नथी.
श्रीमद् राजचंद्र