: पोष : २००० आत्मधर्म : १९ :
प्राप्त करी बंधनो अभाव करी शके. ए चार हेतु लक्षमां राखी आ शास्त्र पंडितजीए प्रगट करेलुं हतुं. (जुओ
समय प्राभृत नवी आवृत्ति पा. पथी९ श्रीमद्रायचंद्र शास्त्रमाळामां प्रसिद्ध थयेल श्री समयसारनी पंडित
मनोहरलालनी प्रस्तावना जेमां पंडित ज्यचंद्रजीना विचारोनुं अवतरण कर्युं छे. (पानां ४ थी ७) त्यां पण आ
प्रमाणे जणाव्युं छे,
श्री ज्यसेन आचार्य शुं कहे छे. :– श्रीमान ज्यसेन आचार्य आ संबंधमां नीचेनी मतलबे प्रश्न उत्तर रूपे कहे छे:–
प्रश्न:–आ प्राभृत शास्त्र (समयसार) जाणीने करवुं शुं?
उत्तर:–सहज शुध्ध ज्ञानानंद स्वभाव, निर्विकल्प, उदासीन नित्य निरंजन शुध्धात्म सम्यक् श्रध्धा–ज्ञान
चारित्ररूप निश्चय रत्नत्रयात्मक निर्विकल्प समाधिथी प्रगटता वीतराग सहजानंदरूप सुखनी अनुभूति ते मात्र
मारुं लक्षण छे; हुं स्वसंवेदनथी जाणी शकाय तेवो छुं. प्राप्त करवा लायक छुं. मारी अवस्थाथी भरपुर छुं.
मिथ्याशल्य राग द्वेष क्रोधादि तमाम विभाव परिणामथी रहित हुं छुं, एम शुध्ध निश्चयनय वडे त्रणे जगतमां
त्रणे काळमां कृत कारित अने अनुमत छे, एम सर्व जीवोए निरंतर भावना करवी ए ज कर्तव्य छे. (हिंदी
समयसार पानुं पप७ थी ५६७)
वळी तेओ श्री (पाने ३० में) जणावे छे के, प्रथमनी बार गाथा सांभळी आसन भव्यजीव हेय–
उपादेय तत्त्वजाणी विशुध्ध ज्ञान–दर्शन स्वभावमय पोताना स्वरूपनी भावना करे छे. विस्तारथी वर्णन
करवामां आवे त्यारे समजी शके तेवा जीवो श्री समयसारना जे नव अधिकारो छे. ते जाणी पोताना विशुध्ध
ज्ञान–दर्शन स्वभावमय पोताना स्वरूपनी भावना करे छे.
हवे पछी :– भगवान श्री अमृतचंद्राचार्य तथा भगवान श्री कुंदकुंद आचार्य देव कहे छे के, अत्यंत अज्ञानी माटे
आ शास्त्र छे. ते हवे पछी जणाववामां आवशे.
बे मित्रो
वच्चे गंभीर संवाद
लेखक :– दोशी रामजीभाई माणेकचंद
पहेलो मित्र :– मारा नाना भाई कहे छे के, आपणे चोवीश कलाक रोटला न खाईए अने पाणी न पीईए
तो आपणने धर्म थाय?
बीजो मित्र :– मारा मोटाभाई कहे छे के, तेम होई शके नहीं; तमे कह्युं तेम थाय अने तेमां शुभ भाव
राखीए तो ते शुभ भाव वडे पुण्य बंधाय–धर्म थाय नहीं केमके धर्म तो अबंध छे.
पहेलो मित्र :– पण नाना भाई कहे छे के, पहेलांं में जणाव्युं हतुं तेम करीए तो तप थाय; अने तपथी
निर्जरा थाय एम शास्त्रोमां कह्युं छे. माटे तमारा मोटाभाईनी भूल थती तो नहीं होयने?
बीजो मित्र :– में मारा मोटा भाई साथे आ वात खूब चर्ची छे अने ते तो कहे छे के, तपथी निर्जरा थाय ते
वात साची पण ते सम्यक् (यथार्थ) के असम्यक्? एम मने पूछयुं, त्यारे में विचारी जवाब
आप्यो के ते सम्यक् तप ज होवो जोईए.
पहेलो मित्र :– मारा नाना भाई कहे छे के, भाई जुओ! आपणने रोटला पाणी बधुं मळ्युं छे, अने आपणे
पोते रोटला आपणी छती शक्तिथी स्ववशे छोडीए तेथी धर्म थाय, सम्यक्तप थाय. जेने
खावा न मळे अने तेथी परवशे रोटला न खाय तेने धर्म न थाय.
बीजो मित्र :– अरे! मारा मोटाभाई कहे छे के, सम्यक्द्रष्टिने तप होय छे. बीजाने नहीं. तमारा नाना भाई
कहे छे तेने भगवाने सम्यक् तप कह्यो नथी. अने तेनी व्याख्या ‘इच्छा निरोध तपः’ एम करे
छे, अने ते व्याख्यामां तमे कहेली वात आवती नथी–माटे ते तप न कहेवाय.
पहेलो मित्र :– मारा नाना भाई कहे छे के, जुओ! तेमां रोटला खावानी अने पाणी पीवानी ईच्छा रोकी,