Atmadharma magazine - Ank 003
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म माह : २०००
२४९३ भगवाननी आरतीना घीना.
२३९३ फागण थी आसो सुधी.
१०० कारतक थी मागशर सुद–१प सुधी.
११प० श्री ज्ञान खातामां.
११प० शास्त्र पूजन तथा परचुरण.
२००१ श्री सोनगढ जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टने मकान फंड माटे–
१००१ पारेख लीलाधर डायाभाईना धर्मपत्नी जयाकुंवर बेन तरफथी.
१००० जसाणी पुंजाभाई भवानभाई तरफथी
२३४९ श्री समयसार प्रवचनोना ग्राहकनी अगाउथी आवेली रकमना–
२१९० श्री गुजराती प्रवचनसारना ग्राहकोनी अगाउथी आवेली रकमना–
१२६४ श्री सनातन जैन ब्रह्यचर्य आश्रम माटे
१००१ देसाई चंदुलाल वलमजी अने भाईओ तरफथी–
२६३ परचुरण–
१२६४
११०० श्री व्याख्यान होलमां बेठक उपरना छोड माटे.
११०० छबलबेन, ते फुलचंद परसोतम तंबोलीना धर्मपत्नी तरफथी
३०१४६ एकंदर टोटल. त्रीस हजार एकसो छेंतोलीस रूपिया त्रण आना–
आ उपरांत राजकोटमां आवेला महेमानोना खर्च माटे आपेल रकमो, श्री सोनगढ जैन अतिथि सेवा
समितिने आपेल रकमो, सभ्य तरीके लवाजमना तथा ‘आत्मधर्म’ ना लवाजम तरीके सोनगढ सरकारी
दवाखानाने, सोनगढ राहत समिति वगेरेने मुमुक्षु भाई–बहेनो तरफथी जे रकमो आवी छे ते जुदी छे.
श्री सनातन जैन ब्रह्मचर्याश्रम
(१) आ आश्रममां जैन शास्त्रोनो अभ्यास कराववामां आवे छे. (२) विद्यार्थीओनुं रहेवानुं तथा जमवानुं
खर्च आ आश्रम तरफथी आपवामां आवे छे. (३) विद्यार्थीनी उंमर १४ वर्ष अगर तेथी उपरनी होवी जोईए. (४)
अभ्यास क्रम त्रण वर्ष सुधीनो छे. (प) जेने दाखल थवा ईच्छा होय तेणे नीचेने ठेकाणे पत्र व्यवहार करी छापेलुं
फोर्म मंगावी लेवुं. श्री प्रमुख जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट. सोनगढ (काठियावाड)
मिथ्यात्वसहित अहिंसादिनुं फळ
अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग ए जो मिथ्यात्वयुक्त होय तो कडवी तुंबडीमां राखेला दूधनी माफक
ते व्यर्थ जाय छे. कडवी तुंबडीमां राखेलुं दूध पित्तोपशम करवा, मीठाश वगेरे गुणोथी रहित थई जाय छे. एटले के ते दूधमां
अफळता आवे छे. तेम ज अहिंसादि मिथ्यात्व सहित होय तो आत्मानो स्वर्गमां (देवगतिमां) जन्म थाय; पण लोकांतिक
देवापणुं प्राप्त थवुं एवा एवा सातिशय फळ प्राप्त थतां नथी. मिथ्यात्व दुषित अहिंसादिकथी फक्त फळातिशय मळतुं नथी,
एटलुं ज नहीं पण ते आत्मामां रहीने महादोषोनी पण उत्पत्ति करे छे.
औषध जो के गुण करवावाळुं होय छे, तो पण विष मिश्रित थई गयुं होय तो ते दोषयुक्त ज थाय छे. तेवी
रीते अहिंसादि मिथ्यात्वथी युक्त होय छे, त्यारे ते गुण थवाने बदले संसारमां दीर्घकाळ सुधी परिभ्रमण कराववावाळा
दोषोने धारण करे छे, अथवा मिथ्याद्रष्टिने ए अहिंसादि पापानुबंधि स्वल्प ईन्द्रिय सुखनी प्राप्ति करी दीए छे, परंतु
तेने बहु आरंभ अने परिग्रहमां आसक्त करीने नरकमां लई जाय छे. तेथी मिथ्यात्वदुषित अहिंसादि दोषोने उत्पन्न
करे छे, एम समजवुं जोईए. विष मिश्रित औषधथी लाभ नथी थतो तेम ज मिथ्यात्व सहित अहिंसाथी मोक्षनी प्राप्ति
थती नथी. (भगवति आराधना प्रा. १८४–१८प)*
वेषधारीधर्मोपदेशक
जेना राग, द्वेष, अज्ञान सर्वथा टळी गया छे, एवा वीतराग जिनेश्वर सर्वज्ञदेव, तीर्थंकर आदिनो परूपेलो
न्याय धर्म, लोकोत्तर मार्ग ओळख्या विना घणा लोको धर्मउपदेशक वेशधारी थईने बधा धर्मनो समन्वय करे छे. कजात
अने सजात एटले लौकिक मार्ग अने अलौकिक सन्मार्गरूप अपूर्व धर्मनो समन्वय करे छे. आलपाकना कपडा साथे
कंतान सांधीने कहे छे के बंने सरखां छे. एम स्वछंदे पोतानी मतिकल्पनाथी सर्वज्ञ परमात्माना न्यायने अल्पज्ञ जीवो
बीजा लौकिक धर्म साथे सरखावे छे. क्यां आगीयानुं तेज अने क्यां सूर्यनुं तेज? एनो समन्वय करनार सूर्यने ढांकवा
प्रयत्न करे छे; ए बधा आत्मज्ञानथी अजाण छे.
(आत्मसिद्धिशास्त्र पर प्रवचनो)*