Atmadharma magazine - Ank 003
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १ लुं अंक ३ माह २०००
(अनुसंधान पान ६ नुं चालु)
वर्तमान अवस्थामां रागादि कषाय घटाडवानो पुरुषार्थ ठेठ पूर्ण वीतराग थाय त्यां लगी रहे छे.
चार ज्ञानना स्वामी गणधर तथा ज्ञानी धर्मात्माओ पण सत्पुरुषनो उपदेश सांभळे छे. उपदेशमां निमित्तनी
भाषा आवे के रागद्वेष प्रमादनो नाश करो, अल्प पण प्रमाद करो नहि. अभिप्रायमां जाणे छे के परामार्थे मारा
स्वभावमां रागद्वेष प्रमाद नथी, पण हजी वर्तमान अधुरी अवस्थामां परना निमित्ते मलीनता थई जाय छे, एम
निश्चय अने व्यवहार बेउ न्याय धर्मात्मा ज्यां जेम घटे तेम समजे छे. परमार्थने लक्षे पुरुषार्थ एकने मुख्य अने एक
द्रष्टिने गौण एम यथास्थाने विवेक कोण करे? बधी समजण पोताने ज करवी पडशे.
गोर परणावी दे पण संसार चलावी न दे. तेम श्रीगुरु साचा परमार्थनी दशा बतावे पण कोई जीव अजीवने
परिणमावी न शके. कारणके शास्त्रमां मार्ग कह्यो छे, मर्म कह्यो नथी. गुरुगमनो महिमा पोतानी समजणमां उतारवो जोईए
परभावनो त्याग, संसार परिग्रहथी, देहादि विषयोथी वैराग्य ए त्याग वैराग्यनो पुरुषार्थ परमार्थ लक्षे थवो जोईए.
अंतरंग ज्ञाननी स्थिरतानो ‘पुरुषार्थ वीतराग द्रष्टिनी द्रढता माटे जोईए. तेमां पात्रता अने सत्समागमनुं बळ जोईए.
(अनुसंधानपान पाछळनुं चालुं)
एनो उदय छे ते मोहनो उदय थतां आकुळताने सहकारी कारण थाय छे. पण मोहना उदयनो नाश थतां एनुं
बळ नथी. अंतर्मुहुर्तमां आपोआप ते नाश पामे छे. अने सहकारी कारण पण दूर थई जाय त्यारे प्रगटरूप निराकुळ
दशा भासे त्यां केवळज्ञानी भगवान अनंत सुख रूप दशाने आप्त कहीए छीए.
अघाति कर्मोना उदयना निमित्तथी शरीरादिकनो संयोग थाय छे. मोह कर्मनो उदय थतां शरीरादिकनो संयोग
आकुळताने बाह्य सहकारी कारण छे. अंतरंग मोहना उदयथी रागादिक थाय अने बाह्य अघाति कर्मोना उदयथी
रागादिकना कारणरूप शरीरादिकनो संयोग थाय त्यारे आकुळता उपजे छे. मोहनो उदय नाश थवां छतां पण अघाति
कर्मोनो उदय रहे छे. पण ते आकुळता उपजावी शकतो नथी. परंतु पूर्वे आकुळताने सहकारी कारण रूप हतो. माटे ए
अघाति कर्मोनो नाश पण आत्माने ईष्ट ज छे. केवळी भगवानने एना होवा छतां पण कांई दुःख नथी माटे तेना
नाशनो उद्यम पण नथी, परंतु मोहनो नाश थतां ए सर्व कर्मो आपोआप थोडा ज काळमां नाशने प्राप्त थई जाय छे.
ए प्रमाणे सर्व कर्मोनो नाश थवो ए ज आत्मानुं हित छे. अने सर्व कर्मोना नाशनुं ज नाम मोक्ष छे. माटे आत्मानुं
हित एक मोक्ष ज छे, अन्य कांई नथी, एवो निश्चय करवो.
(मोक्षमार्ग प्रकाशक)
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
अत्मधम
दर महिनानी शुद २ ना प्रगट थाय छे. शरू थतां नवा महिनाथी ज ग्राहक थई शकाय छे.
वार्षिक लवाजम रूा. २–८–० छुटक नकल ४ आना. परदेशनुं वा. ल. ३–२–० ग्राहको तरफथी सूचना आव्या
वगर नवा के जूना ग्राहकोने वी. पी. करवामां आवतुं नथी.
लवाजम पूरूं थये लवाजम पूरूं थयानी स्लीप छेल्ला अंकमां चोंटाडी ग्राहकने जाण करवामां आवे छे.
ग्राहक तरीके चालु रहेनारे कां तो मनीओर्डरथी लवाजम मोकली आपवुं अथवा वी. पी. थी लवाजम वसुल
करवानी सुचना लखी जणाववी.
म. ओ. के वी. पी. करवानी सूचना नहि आवे तो ग्राहक तरीके चालु रहेवा नथी ईच्छता एम समजी मासिक
मोकलवुं बंध करवामां आवशे.
नमुनानी नकल मफत मोकलवामां आवती नथी. माटे नमुनानी नकल मंगावनारे चार आनानी टिकिटो
मोकलवी.
सरनामानो फेरफार अमोने तुरत जणाववो के जेथी नवो अंक नवा सरनामे मोकलावी शकाय.
ग्राहकोए पत्रवहेवार करती वखते पोतानो ग्राहक नंबर अवश्य जणाववा विनंति छे.
वर्षना कोई पण महिनाथी ग्राहको नोंधवामां आवता होवाथी, महिना करतां अंकना पूंठा उपर मोटा अक्षरे
छापवामां आवता संख्यांकनी ज गणतरी राखवामां आवे छे. जेटलामां अंकथी लवाजम भरवामां आवे ते अंकथी गणीने
बार अंक ग्राहकोने मोकलवामां आवे छे. एटले, ग्राहकोए पण महिनानी नहि पण अंकोनी संख्यानी ज गणतरी राखवी.
सोल एजन्ट शिष्ट साहित्य भंडार
विजयावाडी, मोटा आंकडिया काठियावाड