Atmadharma magazine - Ank 004
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष: १ परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजी स्वामी फागण
अंक: ४ ना हृदयोद्गार. ता. २–२–१९४४ २०००
१ किंचित् मात्र आज सुधी ५रने [जीव के जडने]
लाभ के नुकसान ते कर्युं ज नथी.
२ आज सुधी कोईए [जड के जीवे] किंचित् मात्र
तने लाभ के नुकसान कर्युं ज नथी.
३ आज सुधी तें सतत् तारा माटे एकलो
नुकसाननो ज धंधो कर्यो छे. अने साची
समजण नहि कर त्यां सुधी ते धंधो चालशे ज.
४ ते नुकसान तारी क्षणिक अवस्थामां थयुं छे.
तारी वस्तुमां नथी थयुं.
५ तारी चैतन्य वस्तु धु्रव–अविनाशी छे माटे ते
धु्रव स्वभाव तरफ लक्ष (द्रष्टि) देतो शुद्धता
प्रगटे, नुकसान टळे–अटळ लाभनो धंधो थाय.
वार्षिक लवाजम छुटक नकल
रूपिया २–८–० चार आना
शिष्ट साहित्य भंडार * मोटा आंकडिया * काठियावाड