Atmadharma magazine - Ank 004
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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जैनधर्म
गतांकथी चालु
तारीख ७ मी डिसेम्बर १९४३ थी ता. १२ सुधी राजकोट मुकामे रामकृष्ण आश्रम तरफथी बधा धर्मोनी
परिषद् भरवामां आवेली हती, तेमां जैन धर्म उपरना विचारो दर्शाववा श्री. रामजी माणेकचंद दोशीने
आमंत्रण आपवामां आव्युं हतुं. ते वखते तेओए जे व्याख्यान आपेलुं ते अहीं रजु करवामां आवेल छे.
लेखक:– रामजी माणेकचंद दोशी
स्त्र द्धि
जैन शास्त्रोमां कथन बे प्रकारे छे. एक वास्तविक (परमार्थ, खरेखरी, निश्चय) द्रष्टिए; बीजुं भंग–
भेद, निमित्त वगेरे अवस्था द्रष्टिए; ज्यां व्यवहार द्रष्टिए कथन कर्युं होय त्यां तेनो शब्दे–शब्द अर्थ करवामां
आवे तो खोटो छे. दा. त. ‘ईंग्लांड जर्मनी सामे लडे छे.’ आवुं कथन लोकोमां प्रसिद्ध छे, पण तेनो अर्थ शब्द
प्रमाणे करवामां आवे तो ते असत्यार्थ छे, माटे तेनो परमार्थ शुं छे ते समजी परमार्थ अर्थ करे तो खरो छे;
नहीं तो अर्थ खोटो छे, अने खोटाने खरो मानवामां आवे तो अनादिनी भ्रमणा ऊभी रहे; अने व्यवहार
वचनो ज जाणे निश्चयनां वचनो छे एवो शास्त्रनो अर्थ करी ते भ्रमणाने पोषे तो पोताने शास्त्रनो अभ्यास
छे एवो गर्व आव्या वगर रहे नहीं. जैन शास्त्रनो अर्थ केवी रीते करवो तेनी रीत श्री मोक्षमार्ग प्रकाशकमां
पाने–२५६ मां आपवामां आवी छे अने ते नीचे मुजब छे.
“जिन मार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनय (वास्तविक द्रष्टि) नी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो
‘सत्यार्थ एम ज छे.’ एम जाणवुं; तथा कोई ठेकाणे व्यवहार नय [व्यवहारद्रष्टि] नी मुख्यता सहित
व्याख्यान छे तेने ‘एम नथी पण निमित्तादिनी अपेक्षाए उपचार कर्यो छे.’ एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे
जाणवानुं नाम ज बन्ने नयोनुं ग्रहण छे, पण बन्ने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी ‘आ प्रमाणे
पण छे, अने आ प्रमाणे पण छे’ एवा भ्रमरूप प्रवर्तवाथी तो बन्ने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.”
ए पद्धतिए यथार्थ अर्थ करवो, अने खरेखर स्वरूप शुं छे ते जाणवुं अने व्यवहार एटले के विकार,
भेदभंग, निमित्त, अवस्था, बाह्य वगेरे जे जेम छे तेम ते रूपे जाणवा; अने ए रीते जाणी पछी व्यवहार
उपरनुं लक्ष छोडी निश्चय उपर लक्ष आपवुं अने तेवुं लक्ष आपतां शुद्ध अवस्था प्रगटे छे; ज्यारे भेद–भंग,
विकार, निमित्त वगेरे उपर लक्ष देतां विकारी अवस्था प्रगटे छे; निमित्तथी लाभ–नुकसान मानवामां आवे तो
प्रतीति (द्रष्टि) नो दोष आवे छे, अने निमित्त छे ज नहीं एम जे जाणे ते ज्ञाननो दोष छे; माटे दर्शन अने
ज्ञान बन्ने दोष रहित होवां जोईए, एटले के ते सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञानरूप होवा जोईए; एम होय त्यारे ज
जीवनुं त्रिकाळी टकतुं धु्रव स्वरूप छे ते उपर लक्ष (वलण) रह्या करे छे, अने तेथी सम्यक् चारित्र प्रगटे छे. जैन
शास्त्रोमां जीव, तेनी विकारी अवस्था, अविकारी अवस्था, कर्मोनी साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध अजीव
वगेरे वैज्ञानिक रीते सिद्ध कर्युं छे. जैन ते कर्मवादी दर्शन नथी पण आत्मवादी दर्शन छे.
जैन दर्शनी अनादिता.
वर्तमान जेटला क्षेत्रे जई शकाय छे तेटलुं ज मनुष्य क्षेत्र नथी, एटले तमाम मनुष्य क्षेत्रने लक्षमां
राखतां विश्वमां जेम अज्ञानता अनादिनी छे तेम साचुं ज्ञान पण अनादिथी छे–जो ‘ज्ञान’ आ जगतमां न
होय तो आ जगतमां ‘अज्ञान’ पण न होय; अने सम्यग्ज्ञान कहो के जैन धर्म कहो, बन्ने एक ज छे अने तेथी
जैनधर्म अनादिथी छे, अने अनंतकाळ सुधी रहेशे. मनुष्य क्षेत्रना अमुक काळे ते न होय ते बने, पण सर्व
मनुष्य क्षेत्रे अने सर्व काळे अज्ञान होय तेम बने नहीं; जो तेम बने तो ‘अज्ञान छे’ एम नक्की कोणे कर्युं?
सम्यग्ज्ञान ज सत्यज्ञान अने अज्ञानने नक्की करे छे. अमुक मनुष्य क्षेत्रे केटलोक वखत सम्यग्ज्ञान न होय तेम
बने, पण ते क्षेत्रे वळी अमुक वखते एक जीव पोतानी उन्नति साधतो साधतो तेवो मनुष्य क्षेत्रमां जन्मे अने
त्यां पोतानी उन्नति पूरी करी केवळ ज्ञान प्रगटे, ते वखते ते